गिरिराज साप्ताहिक ( 27 अगस्त- 02 सितम्बर, 2025) का संपादकीय/Editorial
संस्कृति व महिला सशक्तीकरण का संगम : पहाड़ी आंगन
हिमाचल प्रदेश की संस्कृति उसकी आत्मा है। यहाँ की परंपराएँ, रीति-रिवाज और लोकधरोहरें समय के साथ और भी प्रासंगिक बनती गई हैं। इसी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक रही है।
ग्रामीण परिवेश में महिलाएँ न केवल घर-परिवार की धुरी हैं बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की भी प्रमुख संवाहक हैं। लोकगीत, नृत्य, त्यौहार और मेले इनकी जीवनधारा के अभिन्न अंग हैं। इन गतिविधियों के माध्यम से न केवल संस्कृति जीवित रहती है बल्कि समाज में सामूहिकता की भावना भी पुष्ट होती है।
महिला सशक्तीकरण का सबसे सशक्त मंच भी यही सांस्कृतिक गतिविधियाँ रही हैं। आंगनवाड़ी केंद्रों के रूप में यह आंगन आज ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा, पोषण और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर कर रहे हैं। यहाँ महिलाओं को अपने अधिकारों, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के विषय में जागरूक किया जाता है।
इसी संगम से ‘पहाड़ी आंगन’ की संकल्पना प्रकट होती है—जहाँ संस्कृति का संरक्षण भी हो और महिलाओं की सशक्त भूमिका भी सुनिश्चित हो। यही आंगन समाज को नयी दिशा देने की क्षमता रखते हैं।
संस्कृति व महिला सशक्तीकरण का संगम पहाड़ी आंगन
- विश्लेषण: यह आलेख “पहाड़ी आंगन” नामक एक प्रदर्शनी के बारे में है, जिसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और हिमाचल की पारंपरिक जीवन शैली, हस्तशिल्प और व्यंजनों को बढ़ावा देना है । यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें एक नई पहचान देने का एक प्रयास है । इसमें बताया गया है कि यह पहल न केवल महिलाओं का सशक्तीकरण कर रही है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा दे रही है ।
हिमालय की पुकार
भारत केवल कृषिप्रधान देश ही नहीं है, बल्कि यह संस्कृति और जनजीवन की विविध गतिविधियों का भी देश है। इसलिए किसी भी दृष्टिकोण से देखें, भारत को अलग करके नहीं देखा जा सकता। यही कारण है कि भारत की विशेषता लगातार और स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती रही है।
भारत की विशेषताओं में एक यह भी है कि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या पहाड़ों की गोद में बसती है। इस जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हिमाचल प्रदेश में रहता है। इस प्रदेश की विशेषता यह है कि यह कभी भी किसी भी घटना को देखकर विचलित नहीं होता, बल्कि हर स्थिति को स्वीकार कर आगे बढ़ता है। यही कारण है कि इस प्रदेश को “भारत का जल-स्रोत” भी कहा जाता है।
यहाँ का मौसम, यहाँ की धरती और यहाँ के जल स्रोत कृषि उत्पादन की दृष्टि से विशेष हैं। देश में सुख-समृद्धि की हर पहल यहाँ से शुरू होती है।
लेकिन इस सुख-समृद्धि के साथ अनेक दुख-दर्द भी जुड़े हैं। हिमाचल में जब भी अत्यधिक वर्षा होती है तो यहाँ की उपजाऊ भूमि बर्बाद हो जाती है। यदि वर्षा कम हो तो उत्पादन घट जाता है और किसान अपनी मेहनत का बहुत कुछ खो बैठता है। इस प्रकार यह प्रदेश हमेशा किसी न किसी आपदा से प्रभावित रहता है।
इसीलिए हिमाचल की ओर से एक गंभीर आह्वान है कि यदि देश के अन्य राज्यों की तरह यहाँ भी कृषि उत्पादन के लिए विशेष तैयारी की जाए तो यह प्रदेश केवल स्वयं के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए बहुत कुछ कर सकता है।
हिमाचल के लोगों की आवश्यकता है कि यह प्रदेश उन्हें कुछ लौटाए। उन्हें चाहिए कि देश की सोच में हिमाचल को भी स्थान मिले। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि यह प्रदेश उन्हें संबल दे सकता है। इसलिए, यदि वे अपनी सोच और तैयारी में सुधार करें तो यह प्रदेश उनके लिए और देश के लिए बहुत कुछ कर सकता है।
हिमालय की पुकार: सफल हुए जब उन्होंने स्थानीय स्कूलों, सामाजिक प्रभाव का मार्ग बन चुका सांस्कृतिक कंटेंट प्रकाशित कर रही हैं।
विश्लेषण: यह आलेख उच्चतम न्यायालय द्वारा हिमाचल प्रदेश में विकास के नाम पर हो रहे पर्यावरण के नुकसान पर व्यक्त की गई चिंता पर केंद्रित है । इसमें कहा गया है कि फोरलेन सड़कों, जलविद्युत परियोजनाओं और बेलगाम निर्माण कार्यों ने पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे भूस्खलन, बाढ़ और बेमौसम बारिश जैसी आपदाएं बढ़ी हैं । लेखक का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सिर्फ भौतिक नुकसान के बारे में नहीं है, बल्कि उस मानसिकता की आलोचना है जिसमें राजस्व को पर्यावरण पर प्राथमिकता दी जाती है ।