संस्कृति व महिला सशक्तीकरण का संगम: ‘पहाड़ी आंगन’ प्रदर्शनी
भारतीय समाज में नारी को प्राचीन काल से ही विशिष्ट स्थान प्राप्त रहा है। आधुनिक दौर में भी महिलाएं विकास की मुख्यधारा में समान रूप से सहभागी बन रही हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा महिला सशक्तीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है ताकि महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक उत्थान सुनिश्चित किया जा सके।
इसी दिशा में एक सशक्त पहल के रूप में, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शिमला स्थित ऐतिहासिक बैटनी कैसल में ‘पहाड़ी आंगन’ प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। इस प्रदर्शनी में स्वयं सहायता समूहों (SHG) की महिलाएं पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों, हस्तशिल्प उत्पादों और हिम-ईरा ब्रांड के तहत स्थानीय वस्तुओं के स्टॉल्स स्थापित कर रही हैं। यह पहल हिमाचल की पारंपरिक जीवन शैली, खान-पान, परिधानों और लोक कलाओं को समर्पित है, जिसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश-विदेश से आए पर्यटक भी उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं।
प्रदर्शनी के पहले चरण में यह मंच शिमला जिला के स्वयं सहायता समूहों को प्रदान किया गया है। प्रदर्शनी के प्रथम चरण में शिमला जिला के स्वयं सहायता समूहों द्वारा 12 स्टॉल लगाए गए हैं, जहां पारंपरिक व्यंजनों की प्रस्तुति और हस्तशिल्प उत्पादों की बिक्री की जा रही है। ‘पहाड़ी आंगन’ में स्थापित यह महिला केंद्रित प्रदर्शनी और विक्रय मंच न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रहा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता की दिशा में एक नई पहचान भी दे रहा है। यह पहल एक ओर जहां हिमाचल की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित कर रही है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को सशक्त भविष्य की ओर अग्रसर भी कर रही है।
प्रदेश में महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत 88 विकास खंडों में अब तक 42,502 स्वयं सहायता समूह गठित किए जा चुके हैं, जिनमें लगभग 3,48,428 महिलाएं सदस्य के रूप में जुड़ी हुई हैं। इनमें से 29,035 समूहों को ₹58 करोड़ 22 लाख 26 हजार रुपये की रिवॉल्विंग फंड वितरित किया गया है। इसके अतिरिक्त, प्रदेश में 3,374 ग्राम संगठन गठित किए गए हैं, जिनमें से 1,120 संगठनों को ₹41 करोड़ पांच लाख रुपये की सामुदायिक निवेश निधि प्रदान की गई है। वहीं, 117 क्लस्टर स्तरीय संघों का भी गठन किया गया है, जो ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग का आधार बन रहे हैं।
ऐतिहासिक बैटनी कैसल में आयोजित ‘पहाड़ी आंगन’ प्रदर्शनियों में शिमला जिला की महिलाओं द्वारा पारंपरिक व्यंजनों एवं हस्तशिल्प उत्पादों की सुंदर प्रदर्शनी लगाई गई है। यह पहल केवल महिला सशक्तीकरण का प्रतीक नहीं है, बल्कि इससे पर्यटन को भी नया आयाम मिलेगा। ‘पहाड़ी आंगन’ के माध्यम से शिमला की महिलाओं को आगे बढ़ाने और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में यह एक सार्थक प्रयास है। अतिरिक्त उपायुक्त, अभिषेक वर्मा ने स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों से ‘पहाड़ी आंगन’ में आने और इस पहल का हिस्सा बनने का आग्रह किया।
उप-मुख्य कार्यकारी अधिकारी, हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, हितेंद्र शर्मा ने बताया कि विभाग द्वारा शिमला स्थित ऐतिहासिक बैटनी कैसल में ‘पहाड़ी आंगन’ पहल की शुरुआत की गई है। पहले चरण में ‘पहाड़ी आंगन’ का मंच शिमला जिला की महिलाओं को उपलब्ध करवाया गया है। इसके पश्चात किन्नौर जिला के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को यह अवसर दिया जाएगा। इसके बाद क्रमशः प्रदेश के अन्य जिलों की महिलाओं को भी यह मंच प्रदान किया जाएगा, जिससे वे अपने पारंपरिक उत्पादों और व्यंजनों को व्यापक स्तर पर प्रदर्शित कर सकें और पर्यटकों तक पहुंचा सकें।
रामपुर विकास खंड के पालदेनलामों स्वयं सहायता समूह से कांता देवी बताती हैं कि उन्होंने 30 मई से ‘पहाड़ी आंगन’ में अपना स्टॉल लगाया है। उन्होंने सरकार द्वारा इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह मंच महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का बेहतरीन माध्यम है। सुमन, खलीनी क्षेत्र के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दिए गए मंच से उन्हें जीवन में नया आत्मविश्वास मिला है। पूनम, ‘नारी शक्ति स्वयं सहायता समूह’ की अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि शिमला जिला की अनेक महिलाएं इस पहल के माध्यम से सशक्त बन रही हैं। उन्होंने सरकार एवं विभाग का आभार जताते हुए कहा कि उन्हें घर से बाहर निकलकर काम करने का अवसर मिला, जिससे उन्हें गर्व और आत्मसंतोष प्राप्त हो रहा है। जिला सोलन निवासी 65 वर्षीय ग्राहक शीला ने बताया कि ‘पहाड़ी आंगन’ में प्रवेश करते ही उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई और उन्होंने यहां से खरीदारी की और पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लिया।
विश्लेषण: यह लेख बताता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार की ‘पहाड़ी आंगन’ पहल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस प्रदर्शनी में स्वयं सहायता समूहों (SHG) की महिलाएं पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन, हस्तशिल्प और हिम-ईरा ब्रांड के तहत स्थानीय वस्तुएं बेच रही हैं। इसका उद्देश्य न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है, बल्कि हिमाचल की पारंपरिक जीवनशैली, खान-पान और लोक कलाओं को भी बढ़ावा देना है। यह पहल ग्रामीण महिलाओं को अपने उत्पादों को व्यापक स्तर पर प्रदर्शित करने और पर्यटन को एक नया आयाम देने का अवसर प्रदान करती है।
मुख्यमंत्री सुख-आश्रय योजना ने बदली अजय की जिंदगी
डेंटल लैब खोलकर बने आत्मनिर्भर
हिमाचल प्रदेश सरकार की संवेदनशील पहल ‘मुख्यमंत्री सुख-आश्रय’ योजना आज प्रदेशभर में जरूरतमंदों के जीवन में उम्मीद और आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही है । बिलासपुर जिला की उप-तहसील झंडूता के रोहल गांव निवासी
अजय कुमार इसका एक उदाहरण हैं, जिन्होंने इस योजना की सहायता से अपने पैरों पर खड़े होकर दूसरों को भी रोजगार देने की दिशा में कदम बढ़ाया है ।
छोटी उम्र में माता-पिता का साया उठ जाने के बावजूद अजय ने हिम्मत नहीं हारी । दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हमीरपुर की एक डेंटल लैब में प्रशिक्षण लेना शुरू किया । सीमित संसाधनों में जीवनयापन कर रहे अजय के जीवन में निर्णायक मोड़ तब आया, जब मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने ‘मुख्यमंत्री सुख-आश्रय’ योजना की शुरुआत की । इस योजना के अंतर्गत अजय को
दो लाख की वित्तीय सहायता प्राप्त हुई, जिससे उन्होंने आधुनिक उपकरणों से युक्त एक डेंटल लैब स्थापित की । आज वह आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं और जल्द ही अन्य दो युवाओं को रोजगार प्रदान कर अपने साथ जोड़ने की योजना भी बना रहे हैं । उनकी यह डेंटल लैब सिर्फ उनकी व्यक्तिगत सफलता का प्रतीक नहीं, बल्कि ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार और सामाजिक उत्थान की एक मिसाल है ।
हेमंत नेगी ‘मुख्यमंत्री सुख-आश्रय’ योजना केवल आर्थिक सहायता देने वाली योजना नहीं है , बल्कि यह
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आजीविका जैसे क्षेत्रों में समग्र सहयोग प्रदान करती है । मुख्यमंत्री द्वारा आरंभ की गई इस योजना के अंतर्गत अब तक लगभग
2,700 नवचिह्नित अनाथ बच्चों को 27 वर्ष की आयु तक प्रति माह ₹4,000 की सहायता दी जा रही है । योजना के अंतर्गत 0 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रतिमाह ₹1,000 की सहायता प्रदान की जाती है, जबकि 14 से 18 वर्ष के अनाथ बच्चों एवं एकल महिलाओं को ₹2,500 मासिक सहायता दी जा रही है । यह सहायता उन्हें बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और शिक्षा जारी रखने में मदद करती है ।
18 वर्ष से अधिक आयु के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा की दिशा में प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कोचिंग संस्थानों की फीस, छात्रावास शुल्क तथा प्रति माह
₹4,000 की छात्रवृत्ति दी जाती है, जिससे वे आर्थिक दबाव के बिना प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें । जिन अनाथ बच्चों के पास रहने के लिए अपना घर नहीं है, उन्हें इस योजना के तहत
तीन बिस्वा भूमि और तीन लाख रुपये तक की राशि घर निर्माण के लिए उपलब्ध कराई जाती है । यह प्रावधान उन्हें स्थायी आश्रय देने और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है ।
विवाह योग्य आयु के पात्र लाभार्थियों को सरकार द्वारा
दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है ताकि विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय आत्मगौरव के साथ ले सकें । इसके अतिरिक्त, जो युवा स्वरोजगार शुरू करना चाहते हैं, उन्हें भी दो लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जा रही है । इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन और सुचारू संचालन के लिए राज्य सरकार द्वारा
101 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया है, जो इसे दीर्घकालिक और स्थिर बनाता है ।
विश्लेषण: यह लेख एक केस स्टडी के रूप में बिलासपुर के अजय कुमार की कहानी प्रस्तुत करता है, जिन्होंने इस योजना की मदद से अपनी डेंटल लैब खोलकर आत्मनिर्भरता हासिल की । लेख के अनुसार, यह योजना केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आजीविका जैसे क्षेत्रों में भी समग्र सहयोग प्रदान करती है । इसमें अनाथ बच्चों को मासिक सहायता (₹4,000 तक), उच्च शिक्षा के लिए कोचिंग फीस और छात्रावास शुल्क, और घर बनाने के लिए वित्तीय सहायता के प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया है ।