गिरिराज साप्ताहिक (26 फरवरी – 04 मार्च, 2025) का संपादकीय
प्रस्तुत है गिरिराज साप्ताहिक के 26 फरवरी – 04 मार्च, 2025 अंक में प्रकाशित संपादकीय लेख “ई-कचरा निपटान के नए नियम”। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ई-कचरे के बढ़ते खतरे, इसके पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों तथा हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा इसके उचित प्रबंधन के लिए लागू किए गए नए नियमों पर प्रकाश डालता है।
संपादकीय (जैसा पत्रिका में है):
ई-कचरा निपटान के नए नियम
आज के तकनीकी युग में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। जिसके कारण हमारा जीवन सरल व सुलभ हुआ है। लेकिन इस तकनीकी प्रगति के साथ इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। दिन-प्रतिदिन इस क्षेत्र में नई-नई तकनीकें आ रही है। जैसे ही बाजार में कोई नई तकनीक का फोन, लैपटॉप या फिर कोई अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आते हैं, तो हम नया गैजेट्स लेने की चाह में पुराना गैजेट फेंक देते हैं। ई-कचरे में विषाक्त घठक होते हैं जो उचित प्रबंधन के अभाव में पर्यावरण और स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। कबाड़ में फेंके गए इन गैजेट्स के पुराने पुर्जे सैकड़ों सालों तक जमीन में प्राकृतिक रूप से घुलने से भी नष्ट नहीं होते हैं जिसके कारण वे वातावरण में प्रवेश कर हानिकारक प्रभाव पैदा करते हैं। पर्यावरण में मौजूद ये खतरनाक रसायन कैसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं और हम भी इस बात से अवगत नहीं होते हैं कि कबाड़ में फेंकी गई इस तरह की वस्तुएं कितनी खतरनाक हैं।
इसी चिंता के दृष्टिगत हिमाचल प्रदेश सरकार ने बढ़ते ई-कचरे और निपटान से जुड़ी समस्याओं से निजात पाने के लिए नये नियम लागू किए हैं अब सभी सरकारी विभागों, बोडों, निगमों और आयोगों द्वारा उत्पन्न ई-कचरे का निपटान ‘ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2016’ के नियम-9 के अनुसार किया जाएगा। इन नये नियमों के तहत ई-कचरे को केवल अधिकृत संग्रह केन्द्रों, निर्माताओं के डीलरों, विघटन कर्ताओं, पुनर्चक्रणकर्ताओं या निर्माताओं द्वारा नामित टेक-बैंक सेवा प्रदाताओं के माध्यम से अधिकृत विघटनकर्ताओं या पुनर्चक्रणकर्ताओं तक पहुंचाने का निर्णय लिया है। अब केवल हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत अधिकृत ई-कचरा संग्रह केन्द्र, निर्माताओं के डीलर, विघटनकर्ता या पुनर्चक्रणकर्ता ई-कचरे की नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र होंगे। हिमाचल प्रदेश में ई-कचरा निपटान प्रथाएं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2016 के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं थे जिस कारण प्रदेश में नये नियमों को लागू किया गया है। साथ ही ई-कचरे के निपटान के लिए नियमों का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य किया गया है। लोगों से भी आग्रह किया गया है कि वे ई-कचरे को खुले स्थानों या सामान्य कचरे के साथ न फेंके।
जिन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों ने मानव जीवन को सुगम बनाया है। वही इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद हमारे जीवन में जहर भी घोल रहे हैं। यदि समय रहते इन गैजेट्स के कचरे का उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो ये पदार्थ मिट्टी, पानी और हवा को दूषित करेंगे जिसके कारण मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी एक गंभीर खतरा पैदा होगा। और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए एक गंभीर समस्या पैदा होगी। ई-कचरे के सामान्य स्रोतों में टेलिविजन, कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, माइक्रोवेव, ओवन, वैक्यूम क्लीनर, ई-सिगरेट और बच्चों के छोटे-छोटे खिलौने इत्यादि भी शामिल है। इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है जो हमारे स्वास्थ्य के साथ तापमान को भी प्रभावित करती है। इसलिए हमें इस समस्या का ठीक से प्रबंधन करना होगा। अन्यया आने वाले समय में इस बढ़ते वैश्विक ई-कचरे की मात्रा दोगुनी होकर एक विकराल रूप धारण कर लेगी। ऐसे में अगर हम अपने आस-पास के परिवेश को साफ-सुथरा रखने के लिए छोटी-छोटी पहल अपने स्तर पर करेंगे तो इस चुनौती का काफी हद तक सामना कर सकेंगे। हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि नया प्रोडेक्ट खरीदने से पहले पुराने को ही रिपेयर करवा लिया जाए, हमें अनावश्यक अतिरिक्त समान की खरीददारी से बचना चाहिए। ऐसा करने से हमारे धन की भी बचत होगी। इसी तरह उपभोक्ता को चाहिए कि वे खराब थर्मामीटर से लेकर सीएफएल बल्ब और मोबाइल फोन इत्यादि को कबाड़ में न फेंके। हमारी प्रगति ही हमारे विनाश का कारण न बन जाए और यह दुनिया ई-कचरे के डंपिंग ग्राउंड में तबदील होकर विनाश का सबब बने तो इस जोखिम को कम करने के लिए ई-कचरे का निपटान जिम्मेदारी से करना होगा। इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ का न सड़ना तो चिंता का विषय है ही इसके अलावा प्लास्टिक ई-कचरे का अनुचित निपटान भी इस प्रदूषण को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुओं में एलिलेन ऑक्साइड और बेजीन जैसे जहरीले रसायन का इस्तेमाल किया जाता है इसके लिए हमें सचेत रहने की आवश्यकता है कि हम केवल ऐसे उत्पादों को अहमीयत दें जो टिकाऊ हो, जिनकी मरम्मत हो या फिर उनका पुनःचक्रण कर उचित निपठान किया जा सके ताकि हम ई-कचरे के पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सके। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हिमाचल प्रदेश, देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने वर्ष 1999 से प्रदेश में प्लास्टिक के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया है।
संपादकीय का विवरण (Description):
यह संपादकीय, “ई-कचरा निपटान के नए नियम”, इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) के बढ़ते दुष्प्रभाव और इसके उचित प्रबंधन की आवश्यकता पर केंद्रित है। लेख में बताया गया है कि तकनीकी प्रगति के साथ ई-कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है, जिसमें मौजूद विषाक्त घटक पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
मुख्य विषय और चर्चा के बिंदु:
- ई-कचरे की समस्या:
- तेजी से बदलती तकनीक के कारण पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (फोन, लैपटॉप, टीवी, आदि) जल्द ही कचरे में बदल जाते हैं।
- ई-कचरे में हानिकारक रसायन होते हैं जो सैकड़ों वर्षों तक प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होते और मिट्टी, पानी व हवा को दूषित करते हैं, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
- हिमाचल प्रदेश सरकार के नए नियम:
- प्रदेश सरकार ने ई-कचरे के निपटान के लिए नए नियम लागू किए हैं।
- सभी सरकारी विभागों, बोडों, निगमों और आयोगों को ‘ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2016’ के नियम-9 के अनुसार ई-कचरे का निपटान करना होगा।
- ई-कचरा केवल अधिकृत संग्रह केंद्रों, निर्माताओं के डीलरों, विघटनकर्ताओं, पुनर्चक्रणकर्ताओं या नामित टेक-बैक सेवा प्रदाताओं के माध्यम से ही अधिकृत इकाइयों तक पहुंचाया जाएगा।
- ई-कचरे की नीलामी प्रक्रिया में केवल हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत अधिकृत संस्थाएं ही भाग ले सकेंगी।
- नियमों का कड़ाई से पालन अनिवार्य किया गया है और लोगों से ई-कचरे को खुले में या सामान्य कचरे के साथ न फेंकने का आग्रह किया गया है।
- जागरूकता और व्यक्तिगत प्रयास:
- संपादकीय में इस बात पर जोर दिया गया है कि ई-कचरे के उचित प्रबंधन के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास आवश्यक हैं।
- उपभोक्ताओं को सलाह दी गई है कि वे अनावश्यक नए गैजेट्स खरीदने से बचें, पुराने उपकरणों की मरम्मत करवाएं और खराब इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को कबाड़ में न फेंकें।
- ऐसे उत्पादों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है जो टिकाऊ हों, मरम्मत योग्य हों या जिनका पुनर्चक्रण संभव हो।
- हिमाचल प्रदेश का पर्यावरण संरक्षण में योगदान:
- लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि हिमाचल प्रदेश ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल करते हुए वर्ष 1999 से ही प्लास्टिक के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है।
प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से महत्व:
यह संपादकीय पर्यावरण प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन (विशेष रूप से ई-कचरा), सरकारी नियम और नीतियां, तथा नागरिक जिम्मेदारियों जैसे विषयों के लिए महत्वपूर्ण है। ‘ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2016’ और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा इसके क्रियान्वयन हेतु उठाए गए कदम प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं। ई-कचरे के हानिकारक प्रभाव, इसके प्रमुख स्रोत और निपटान की सही प्रक्रिया की जानकारी भी आवश्यक है। यह लेख पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकारी और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर जागरूकता और कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।