गिरिराज साप्ताहिक (26 मार्च – 01 अप्रैल, 2025) का संपादकीय

प्रस्तुत है गिरिराज साप्ताहिक के 26 मार्च – 01 अप्रैल, 2025 अंक में प्रकाशित संपादकीय लेख “नशे पर ‘जीरो टॉलरेंस'”। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिमाचल प्रदेश में नशे की गंभीर समस्या और इससे निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर केंद्रित है।

संपादकीय (जैसा पत्रिका में है):

नशे पर ‘जीरो टॉलरेंस’

हिमाचल प्रदेश में नशे की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। बड़ी संख्या में युवा नशे के आदी हो रहे हैं। हाल के दिनों में प्रदेश की राजधानी शिमला सहित अन्य जिलों में नशे की ओवरडोज से मौतें होने के समाचार विचलित करने वाले हैं। चिट्टे के नशे से युवकों की मृत्यु की खबरों ने एक नई चिंता को जन्म दिया है। नशे के इस खतरे ने हर वर्ग को प्रभावित किया है। इस संकट से निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों ही स्तरों पर कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह जरूरी है कि हम इसे और अधिक गंभीरता से लें और इसके खिलाफ निरंतर प्रयास करें।

नशे के खिलाफ मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में राज्य सरकार ने कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पुलिस विभाग को नशा तस्करी के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए मिशन मोड में काम करने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने न केवल नशा तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों को भी इस अपराध में संलिप्त पाए जाने पर उनके विरूद्ध सख्त कदम उठाने की चेतावनी दी है। यह संकेत है कि सरकार नशे के कारोबार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है। नशे के खिलाफ इस अभियान में पुलिस और अन्य विभागों को एकजुट किया गया है। सरकार ने नशे के मामलों की जांच-पड़ताल के लिए एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स को मजबूत करने की बात कही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार नशे के खिलाफ अपनी लड़ाई को और भी मजबूत बनाने के लिए तैयार है। इसके अलावा, नशा तस्करों के खिलाफ संपत्ति जब्ती, बैंक खातों की जांच और मामलों का शीघ्र निपटारा करने के निर्देश भी दिए गए हैं। यह कदम न केवल नशे के व्यापार को रोकने में सहायक होंगे, बल्कि नशे के संकट से जूझ रहे लोगों के लिए भी एक कड़ा संदेश देंगे।

हालांकि, सरकार के इस प्रयास के साथ-साथ समाज की सहभागिता भी इसमें आवश्यक है। प्रदेश की कई पंचायतों ने नशा बेचने और सेवन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का संकल्प लिया है, जो स्वागत योग्य कदम है। इसके साथ ही, शिक्षा विभाग द्वारा भी एक महत्त्वपूर्ण पहल की गई है, जिसमें नौवीं से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से शपथपत्र लिया जाएगा कि वे नशे से दूर रहेंगे। यह कदम न केवल युवाओं को नशे से बचाने में मदद करेगा, बल्कि उन्हें अपने भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी प्रेरित करेगा।

नशे के समूल नाश के लिए अभिभावकों की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वे अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें और किसी भी संदिग्ध व्यवहार पर तुरंत प्रतिक्रिया दें। अगर बच्चा नशे की चपेट में है, तो उसकी काउंसलिंग करवाना और उसे उचित उपचार दिलवाना आवश्यक होगा। परिवार के सदस्यों को मिलकर अपने बच्चे को नशे के दलदल से बाहर निकालने के लिए सहयोग करें। इसके अलावा, बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि नशे की कोई भी गतिविधि केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक और सामाजिक रूप से भी उन्हें नुकसान पहुंचाती है। इस समस्या को सुलझाने के लिए न केवल सरकार, बल्कि समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। पुलिस, प्रशासन, शिक्षा विभाग, पंचायतों और आम नागरिकों सहित सभी वर्गों को मिलकर इस कुप्रवृत्ति के खिलाफ संघर्ष करना होगा। इसके साथ ही, नशे की दवाओं की बिक्री और वितरण पर भी निगरानी बढ़ाने की जरूरत है। सरकार ने उन फार्मा कंपनियों पर भी कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं जो अवैध रूप से नशीली दवाओं का उत्पादन करती हैं। इससे न केवल नशे की दवाओं के अवैध व्यापार पर रोक लगेगी, बल्कि इससे जनता में भी जागरुकता आएगी।

नशे के खिलाफ यह एक समग्र और बहुआयामी लड़ाई है, जिसमें सरकार, समाज और हर नागरिक का योगदान आवश्यक है। नशे के खिलाफ छेड़ी गई इस मुहिम में केवल कानून-व्यवस्था को ही सजग रहने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसके लिए आम जन मानसिकता और सामाजिक व्यवहार में बदलाव भी समय की मांग है। अगर यह सभी पहलू एकजुट होकर काम करें, तो निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश से नशे की समस्या को समाप्त किया जा सकता है।


संपादकीय का विवरण (Description):

यह संपादकीय, “नशे पर ‘जीरो टॉलरेंस'”, हिमाचल प्रदेश में बढ़ती नशे की गंभीर समस्या, विशेषकर युवाओं में चिट्टे जैसे सिंथेटिक नशे के प्रचलन और उससे होने वाली मौतों पर केंद्रित है। लेख में इस सामाजिक बुराई से निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों के स्तर पर किए जा रहे प्रयासों और भविष्य की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया है।

मुख्य विषय और चर्चा के बिंदु:

  1. समस्या की गंभीरता:
    • प्रदेश में नशे की समस्या, खासकर चिट्टे का बढ़ता प्रकोप और युवाओं की मौतें, एक गंभीर चिंता का विषय है।
  2. सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति:
    • मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में राज्य सरकार ने नशे के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई है।
    • पुलिस विभाग को नशा तस्करी के नेटवर्क को खत्म करने के लिए मिशन मोड में काम करने के निर्देश दिए गए हैं।
    • नशे के कारोबार में संलिप्त सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
    • एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स को मजबूत किया जा रहा है।
    • नशा तस्करों की संपत्ति जब्त करने, बैंक खातों की जांच और मामलों का शीघ्र निपटारा करने जैसे कड़े कदम उठाए जा रहे हैं।
  3. सामाजिक सहभागिता और जागरूकता:
    • नशे के उन्मूलन के लिए सरकार के साथ-साथ समाज की सक्रिय भागीदारी को भी आवश्यक बताया गया है।
    • कई पंचायतों द्वारा नशा बेचने और सेवन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकल्प लेना एक सकारात्मक कदम है।
    • शिक्षा विभाग की पहल, जिसमें नौवीं से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों और अभिभावकों से नशे से दूर रहने का शपथपत्र लिया जाएगा, युवाओं में जागरूकता बढ़ाने में सहायक होगी।
  4. अभिभावकों की भूमिका:
    • नशे की रोकथाम में अभिभावकों को अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने और संदिग्ध व्यवहार पर तत्काल कार्रवाई करने की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया है।
    • नशे के आदी बच्चों की काउंसलिंग और उचित उपचार को आवश्यक बताया गया है।
  5. बहुआयामी दृष्टिकोण:
    • यह समस्या एक समग्र और बहुआयामी लड़ाई है जिसमें पुलिस, प्रशासन, शिक्षा विभाग, पंचायतें और आम नागरिक सभी की एकजुटता जरूरी है।
    • नशीली दवाओं की बिक्री और वितरण पर निगरानी बढ़ाने तथा अवैध उत्पादन करने वाली फार्मा कंपनियों पर भी कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।
    • केवल कानून-व्यवस्था ही नहीं, बल्कि आम जन मानसिकता और सामाजिक व्यवहार में भी बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से महत्व:

यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश से संबंधित सामाजिक मुद्दों, राज्य सरकार की नीतियों, कानून-व्यवस्था और जन-जागरूकता अभियानों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। नशे की समस्या, इसके प्रकार (जैसे चिट्टा), सरकार द्वारा उठाए गए कदम (जैसे एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स, संपत्ति जब्ती), सामाजिक पहल (पंचायतों का संकल्प, शपथपत्र) और विभिन्न वर्गों (अभिभावक, शिक्षा विभाग) की भूमिका पर प्रश्न बन सकते हैं। ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का अर्थ और इसके विभिन्न पहलू भी परीक्षा के लिए प्रासंगिक हैं। यह लेख प्रदेश में एक प्रमुख सामाजिक चुनौती और उसके समाधान हेतु सरकारी व सामुदायिक प्रयासों की व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करता है।

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