गिरिराज (11-17 जून, 2025) के अंक का संपादकीय, उसकी विस्तृत व्याख्या के साथ।


मूल संपादकीय (जैसा अंक में प्रकाशित है)

वन-आवरण को बढ़ावा

हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में वनों का बहुत महत्त्व है। अपनी आजीविका कमाने के लिए स्थानीय लोग वन संसाधनों पर निर्भर करते हैं। जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक चिंताओं और पर्यावरण अनुकूल संसाधनों की खोज तथा राज्य की वन संपदा को सुरक्षित और समृद्ध करने की तात्कालिकता को पहचानते हुए प्रदेश सरकार अनेक कदम उठा रही है ताकि प्रदेश में वन आवरण को बढ़ाया जा सके। प्रदेश के हरित आवरण को बढ़ाने के दृष्टिगत राज्य सरकार ने हाल ही में कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत सतत पर्यावरणीय विकास को गति प्रदान करने के लिए ‘मुख्यमंत्री ग्रीन एडॉप्शन योजना’ को स्वीकृति प्रदान की है। इस योजना से निजी संस्थानों को क्षतिग्रस्त वन क्षेत्रों के पारिस्थितिक पुनर्स्थापना में आर्थिक भागीदारी और सहभागिता का अवसर प्राप्त होगा। योजना के अंतर्गत वन विभाग निजी उद्यमियों के साथ पांच वर्षों की अवधि के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेगा। इस समझौता ज्ञापन के तहत अनुमोदित बजट, पौधरोपण की लागत, रखरखाव, संरक्षण, भूमि आर्द्रता संरक्षण, बाड़बंदी तथा अन्य अनुमोदित गतिविधियों से संबंधित सभी विवरण शामिल होंगे। वास्तव में इस पहल का मुख्य उद्देश्य राज्य के वन क्षेत्र को बढ़ाना है। मुख्यमंत्री ग्रीन एडॉप्शन योजना में निजी संस्थाओं को शामिल करने से स्थानीय समुदायों की भागीदारी को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे उन्हें पौधरोपण, सिंचाई-निराई और पौधों का रख-रखाव सुनिश्चित करने के लिए वन प्रहरी सहित अन्य रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। इस योजना से स्थानीय समुदाय जैसे महिला मंडल, स्वयं सहायता समूह और पंचायत प्रतिनिधि रोपित क्षेत्रों का दीर्घकालिक रख-रखाव सुनिश्चित करेंगे जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। वन क्षेत्रों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रदेश में 2061 वन क्षेत्रों में वन मित्र रखे गए हैं जो लोगों को वन संरक्षण के प्रति प्रेरित करेंगे और वनों के अवैध कटान और वनाग्नि जैसी घटनाओं के प्रति सतर्क रहने, पौधरोपण और वन संवर्द्धन करने वाले अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हिमाचल प्रदेश सरकार की यह पहल प्रदेश के हरित जंगलों के संरक्षण और संवर्द्धन, वायु गुणवत्ता में सुधार लाने और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास और हरित हिमाचल का सपना साकार करने के लिए वर्ष 2025-26 में पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर पौधरोपण किया जाएगा जिसमें जंगली फलों और अन्य फलदार पौधे लगाए जाएंगे ताकि बंदर और अन्य जीवों को आबादी वाले क्षेत्रों में आने से रोका जा सके। वन क्षेत्र विस्तार में समुदायों की भागीदारी बढ़ाने हेतु ‘राजीव गांधी वन संवर्द्धन योजना’ लागू की गई है जिसके तहत युवक मंडलों, महिला मंडलों और स्वयं सहायता समूहों को बंजर भूमि पर फलदार एवं अन्य उपयोगी पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। दो हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पहले वर्ष में इन समूहों को 2,40,000 रुपये फलदार और अन्य पौधे लगाने के लिए दिए जाएंगे। इसके बाद भी पांच साल तक जीवित प्रतिशतता तथा 50 प्रतिशत या अधिक होने पर दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें वर्ष तक सालाना एक लाख दिए जाएंगे। इस प्रकार कुल 6 लाख 40 हजार रुपये की राशि प्रत्येक समूह को मिल सकेगी। इससे निश्चित तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। इन सभी वन क्षेत्रों को जियो टैग भी किया जाएगा। इस योजना के लिए 100 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। विश्व बैंक के एफ. डब्ल्यू और जाईका की सहायता से चल रही तीन परियोजनाओं के तहत अगले वर्ष के दौरान लगभग 200 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। हिमाचल प्रदेश को लैंटाना, चीड़ की सूखी सुइयों और कृषि अवशेषों से जंगल की आग, जैव विविधता की हानि, जल संकट, आवास और पारंपरिक आजीविका के नुकसान, जलवायु परिवर्तन और आपदा जैसी गंभीर चुनौतियों के मद्देनजर इन्हें बायोचर, बायो-एनर्जी, बायो-फर्टिलाइजर्स, बायोपेस्टिसाइड, ग्रीन एनर्जी और कार्बन क्रेडिट में परिवर्तन किया जाएगा जिससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। आज के वैज्ञानिक युग में जब हम निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहे है तो सदैव आगे बढ़ने की होड़ में हम प्रत्यक्षतः तात्कालिक लाभ प्राप्त करने के लिए पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी भी उचित-अनुचित कार्य को करते समय, दूरगामी दुष्परिणाम को नजर अंदाज करते हैं। अतः मानव जाति व इस धरा को बचाए रखने के लिए हम सबको पृथ्वी के आभूषण इन पौधों का संरक्षण एक अनिवार्यता है। 

संपादकीय की व्याख्या

यह संपादकीय, “वन-आवरण को बढ़ावा”, हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण और हरित क्षेत्र के विस्तार के लिए प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रमुख योजनाओं और उनके बहुआयामी लाभों पर केंद्रित है।

  • मुख्य तर्क: संपादकीय का केंद्रीय विचार यह है कि प्रदेश सरकार केवल पारंपरिक तरीकों से ही नहीं, बल्कि सामुदायिक भागीदारी और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) को शामिल करके वन-आवरण को बढ़ाने की एक व्यापक और स्थायी रणनीति अपना रही है। इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन से जोड़ना है।
  • प्रमुख विषय:
    1. सामुदायिक भागीदारी: लेख में ‘राजीव गांधी वन संवर्द्धन योजना’ पर विशेष प्रकाश डाला गया है। इस योजना के तहत महिला मंडलों, युवक मंडलों और स्वयं सहायता समूहों को बंजर भूमि पर फलदार पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्हें 5 वर्षों में कुल ₹6.40 लाख की वित्तीय सहायता दी जाएगी, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी और वनों के प्रति अपनेपन की भावना भी बढ़ेगी।
    2. कॉर्पोरेट और निजी क्षेत्र का सहयोग: ‘मुख्यमंत्री ग्रीन एडॉप्शन योजना’ के माध्यम से सरकार निजी संस्थानों और कंपनियों को क्षतिग्रस्त वन भूमि को गोद लेकर वृक्षारोपण करने का अवसर दे रही है। यह पर्यावरण संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का एक अभिनव तरीका है।
    3. रोजगार सृजन: संपादकीय यह रेखांकित करता है कि इन योजनाओं से सीधे तौर पर रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। 2061 वन मित्रों की नियुक्ति और स्थानीय लोगों को वन प्रहरी के रूप में काम मिलना इसका प्रमुख उदाहरण है।
    4. वैज्ञानिक समाधान: यह लेख केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लैंटाना और चीड़ की सूखी पत्तियों (पिरूल) जैसी समस्याओं को बायो-एनर्जी और बायो-फर्टिलाइजर में परिवर्तित करने की सरकार की योजना पर भी प्रकाश डालता है। इससे जंगल की आग को नियंत्रित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिलेगी।
    5. मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी: एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि सरकार 5000 हेक्टेयर क्षेत्र पर जंगली फलदार पौधे लगाने की योजना बना रही है ताकि बंदरों और अन्य जंगली जानवरों को आबादी वाले क्षेत्रों में आने से रोका जा सके।

निष्कर्ष: संपादकीय का सार यह है कि सरकार की ये पहलें सिर्फ पर्यावरण संरक्षण का एक अभियान नहीं हैं, बल्कि यह एक समग्र दृष्टिकोण है जो हरित आवरण बढ़ाने, वायु गुणवत्ता में सुधार, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लक्ष्यों को एक साथ

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