गिरिराज 30-06 मई 2025संपादकीय/वैचारिक लेख और उनका विवरण संपादकीय/वैचारिक लेख और उनका विवरण
वन प्रबंधन
वन प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक बहुमूल्य सम्पदा है जो पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में एक बहुमूल्य घटक होने के साथ-साथ मानव जीवन के लिए आवश्यक हवा, पानी, मिट्टी, खनिज जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं। वन हमें घरेलू और व्यावसायिक उद्देश्य के लिए लकड़ी, फाइबर और अन्य कच्चे माल जैसे अनेक संसाधन प्रदान करते हैं। ये हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड गैस अवशोषित करने के साथ-साथ पृथ्वी के तापमान का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। देवभूमि के वन जहां एक ओर प्रदेश के नैसर्गिक सौन्दर्य को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं वहीं यह पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। हिमाचल प्रदेश के वन उत्तरी भारत के फेफडे भी माने जाते हैं और प्रदेश सरकार ने भी राज्य में हरित आवरण को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना को शुरू किया है ताकि वर्ष 2026 तक प्रदेश अपने हरित राज्य बनने का लक्ष्य पूर्ण कर सके। इस योजना के अंतर्गत एकीकृत स्थल विशिष्ट वनीकरण के माध्यम से राज्य के हरित आवरण को दुर्गम स्थलों तक विस्तारित करना, स्थानीय आबादी को वन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं और आजीविका के अवसर प्रदान करना तथा 500 हेक्टेयर बंजर वन भूमि पर वृक्षारोपण करना भी है। समुदाय संचालित वन प्रबंधन और नियोजन को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ‘वन मित्र’ योजना शुरू की गई है, जिसके तहत नियुक्त किए गए वन मित्र वन विभाग के सभी वानिकी कार्यों से जुड़े रहेंगे। सरकार द्वारा प्रत्येक वन बीट में एक वन मित्र नियुक्त किया जा रहा है। वन प्रबंधन तथा वन क्षेत्र विस्तार में समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु ‘राजीव गांधी वन संवर्द्धन’ योजना के तहत युवक मंडलों, महिला मंडलों तथा स्वयं सहायता समूहों को बंजर भूमि पर वृक्ष, फलदार एवं अन्य उपयोगी पौधों के रोपण और उनके संरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस योजना के लिए 100 करोड़ व्यय किया जाना प्रस्तावित है। बढ़ती मानव आबादी, पशुपालकों के बदलते तौर-तरीकों और विकासात्मक गतिविधियों के कारण वनों पर जैविक दबाव भी बढ़ रहा है। वनों में आग, अनाधिकृत कटान, अतिक्रमण और अन्य वन संबंधी अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा इलैक्ट्रॉनिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी से लैस चेक पोस्ट बनाकर वन सुरक्षा को मजबूत किया जा रहा है। सभी वन प्रभागों में अग्निशमन उपकरण और उन्नत तकनीक को भी अपनाया जाएगा ताकि वनों को विनाशकारी अग्नि से बचाया जा सके। जंगल की आग पर नियंत्रण करने के लिए पूरे राज्य में सर्किल और डिविजन स्तर पर रैपिड फॉरेस्ट फायर टीमें स्थापित की गई हैं। प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास व हरित हिमाचल के सपने को साकार करने के लिए वन क्षेत्र के विस्तारीकरण के विभिन्न कार्यक्रमों को नया स्वरूप प्रदान किया जा रहा है जिसमें जंगली फलों के पौधों और फलदार पेड़ों के पौधों को प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार की इस पहल से वन क्षेत्र में जैव विविधता तो आएगी ही इससे बंदर व अन्य जंगली जीवों को आबादी वाले क्षेत्रों में आने से रोका जा सकेगा। हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता, घने वन, बर्फ से ढके पहाड़, जैव विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण इको-टूरिज्म के लिए एक आदर्श स्थल है। इको टूरिज्म को बढ़ावा देकर सरकार लोगों को रोजगार के नए अवसर प्रदान करेगी। इससे स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा। विभिन्न इको टूरिज्म गतिविधियों के माध्यम से अगले पांच वर्षों में लगभग 200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व अर्जित किया जाएगा। जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल क्षमता को मजबूत करने, जैव विविधता की सुरक्षा, जलग्रहण क्षेत्रों के स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और समय के साथ बेहतर आजीविका के परिणाम प्राप्त करने में मदद मिले इसके लिए हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु प्रूफिंग परियोजना लागू की गई है। इस परियोजना के लिए 308.45 करोड़ के बजट का प्रावधान है और वर्तमान में यह योजना चंबा और कांगड़ा जिला में चल रही है। वन भूमि कटाव को भी रोकते हैं। अपने औषधीय गुणों के कारण जंगली पौधे हमारी फार्मास्यूटिकल आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं। वैश्विक तापमान में संतुलन को बनाए रखते हैं। राज्य में ग्रामीण आबादी के विकास एवं सशक्तीकरण के लिए मुख्यमंत्री हरित विकास छात्रवृत्ति योजना के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। आज हिमाचल प्रदेश को बहुत सी पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जिससे वायु, भूमि, जल और जैव विविधता काफी प्रभावित हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए पर्यावरण प्रदूषण, जल विद्युत, पर्यटन, उद्योग और ग्रामीण विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं ताकि आर्थिक विकास को टिकाऊ पर्यावरण प्रबंधन में संतुलन बनाया जा सके। यशपाल सिंह
विवरण:
यह लेख वनों के महत्व, उनके पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका और मानव जीवन के लिए उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले संसाधनों पर प्रकाश डालता है. यह बताता है कि हिमाचल प्रदेश के वन उत्तरी भारत के लिए फेफड़ों के समान हैं. लेख में प्रदेश सरकार द्वारा वनों के संरक्षण और विस्तार के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का उल्लेख है, जैसे ‘मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना’ (हरित राज्य बनने का लक्ष्य), ‘वन मित्र’ योजना (समुदाय की भागीदारी बढ़ाना) और ‘राजीव गांधी वन संवर्द्धन’ योजना (युवक मंडलों, महिला मंडलों, स्वयं सहायता समूहों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना). वनों की सुरक्षा के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और अग्निशमन उपकरणों के उपयोग पर भी चर्चा की गई है. इको-टूरिज्म को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर सृजित करने और अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने की संभावना भी बताई गई है. ‘हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु प्रूफिंग परियोजना’ जैसी योजनाओं का उल्लेख किया गया है. लेख पर्यावरणीय चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए बनाई जा रही नीतियों पर भी बात करता है. यह लेख पर्यावरण, सरकारी योजनाओं और सतत विकास से संबंधित परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है.
नशा देश की प्रगति में बाधा
आज जहां सब तरफ अनेक सामाजिक समस्याएं व्याप्त हैं, वहीं लोगों को एक और विकराल समस्या का सामना करना पड़ रहा है, नशाखोरी की समस्या का। यह एक ऐसी समस्या है, जो न केवल नशा करने वाले पर अपना प्रभाव छोड़ती है, बल्कि इसका प्रभाव व्यक्ति के परिवार एवं सम्बन्धियों को भी झेलना पड़ता है। वैसे तो नशा अनेक प्रकार का होता है। चाय पीने से लेकर मोबाइल चलाने तक अनेक ऐसे व्यसन हैं, जिनके प्रति व्यक्ति इतने आदी हो जाते हैं कि वे उनके लिए नशे का सबब बन जाती है। पख्तु कुछ नशे तो इतने घातक होते हैं, जो जीवन पर शीघ्र ही हावी होकर अपने विनाशकारी प्रभाव डालने लग पड़ते हैं। व्यक्ति जब गलती से भी इन नशों के चंगुल में पड़ जाता है, तो उनसे बच पाना उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। वास्तव में ऐसे घातक नशे सीधे के दिमाग पर असर करते हैं और इस कारण व्यक्ति का दिमाग सही ढंग से कार्य करना बंद कर देता है। वास्तव में नशा करने वाला व्यक्ति इतना लाचार हो जाता है कि नशे के अतिरिक्त किसी अन्य तरफ वह ध्यान ही नहीं दे पाता। उसके सामने एकमात्र उद्देश्य नशे की पूर्ति करने का ही रह जाता है, जिसके लिए वह कोई भी जोखिम उठा सकता है। नशे से रोकने वाला प्रत्येक व्यक्ति उसे अपना दुश्मन लगता है। नशे के विरुद्ध उपदेश देने वाला व्यक्ति उसे षड्यन्त्रकारी महसूस होता है। उसका दिल और दिमाग कार्य करना बन्द कर देते हैं। वह हर समय गुमसुम सा रहता है। समाज में धीरे धीरे सब ओर फैलते जा रहे इस प्रकार के नशे समाज को अन्दर से खोखला करते जा रहे हैं। नशे के सौदागर अपने मुनाफे के चक्कर में, जहां एक ओर युवक-युवतियों का जीवन नरक की ओर धकेल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे देश की प्रगति के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि बेशक आज वे धन से मालामाल हो रहे हैं, परन्तु कल को उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, क्योंकि जिस प्रकार मेंहदी पीसने वाले के हाथ में रंग स्वयं ही चढ़ जाता है, उसी प्रकार कोयले की दलाली में मुंह कैसा होता है, उन्हें समझाने की जरूरत नहीं है। जिस नशे को वे समाज में परोस रहे हैं, वह नशे की दलदल एक न एक दिन इसे फैलाने वाले को भी अपनी चपेट में अवश्य लेगी। यदि हम इसे आध्यात्मिक रूप से भी देखें, तो प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों का फल अवश्य मिलता है। समाज में ऐसे भी अनेक उदाहरण है, जहां नकली दवाई बनाने वाले के कर्णधार यदि स्वयं नशे की गिरफ्त में होंगे तो देश को कहां ले जा सकेंगे। नशे भी ऐसे-ऐसे की पूछो मत। किसी समय में बीड़ी, सिगरेट या शराब पीना ही नशा कहलाता , परन्तु आज की दुनिया इसे तो नशा समझती ही नहीं। नशे की परिभाषा बदल भी गई है। चिट्टा, स्मैक, हैरोइन, ब्राउन शूगर जैसे नशे आज के युवा पर हावी हो गए हैं। अफीम, गांजा, चरस और नशे के इंजेक्शन भी काले बाजार में सम्मिलित हो चुके हैं। और ये नशे इतने घातक हैं कि गलती से भी यदि कोई व्यक्ति एक बार भी इनका सेवन कर ले, तो वह इनका आदी हो जाता है। फिर वह इनके सेवन से स्वयं को बचा नहीं पाता, जब तक कि वह नशे से मुक्त होने के अनेक सुझाव दिए जाते हैं जैसे कि संगीत सुनना, व्यायाम करना, सैर करना एवं ध्यान करना। इनमें ध्यान करने को सर्वोतम माना जाता है, क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति अपने मन पर वश करना सीखता है। कहा जाता है ‘मनजीते जगतजीत’। अर्थात् जिसने मन को जीत लिया, उसने सम्पूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। व्यापारियों की संतानों ने आवश्यकता पड़ने पर उसी दवाई का सेवन कर लिया और अपने जीवन को संकट में डाल लिया। यह प्रकृति है। इसे हम जो कुछ भी देते हैं, उसे समय आने पर यह वापिस कर देती है। परन्तु नादान मनुष्य इस वास्तविकता को समझना ही नहीं चाहता। उसके जीवन में यदि कोई दुःख आता है, तो वह समझता है कि लोगों की नजर लग गई और किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन में दुःख आता है तो वही कहता है कि उसे उसके कर्मों की सजा मिल रही है। इस प्रकार एक ही प्रकार के फल के लिए उसकी परिभाषा बदल जाती है। खैर, व्यक्ति यह सब समझ जाए तो संसार ही बदल जाए। वह नशे का व्यापार ही न करें। कहते हैं कि आज का युवा कल देश का कर्णधार बनता है। पख्तु देश भी अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत न बना ले। वर्तमान समय में एक ऐसी ही शिक्षा की आवश्यकता है, जो उनकी इस इच्छा शक्ति को मजबूत कर सकें। कुछ माह पहले नूरपुर में एक साथ एच.आई.वी. के पचास से अधिक मामले सामने आए और इसका एकमात्र कारण संक्रमित सिरिंज का प्रयोग करना था, जो उन्होंने नशे के लिए प्रयोग किया था। नशा उन पर इतना अधिक हावी था कि उन्हों ने सिरिंज का इस्तेमाल करते समय जरा सी सावधानी बरतना भी उचित नहीं समझा। वे जीवित होते हुए भी मृत समान प्रतीत होते हैं। पृथ्वी पर रहते हुए भी वे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो चुके होते हैं। वस्तुतः हमें नशे व नशे के पदार्थों से घृणा अवश्य करनी चाहिए, परन्तु नशे के चंगुल में फंस चुके व्यक्तियों से घृणा न करके उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। उन्हें इससे मुक्त होने के लिए सहायता करनी चाहिए। नशे से मुक्त होने के अनेक तरीके स्वास्थ्य विभाग द्वारा सुझाव के तौर पर बताए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर संगीत सुनना, व्यायाम करना, सैर करना एवं ध्यान करना। इनमें ध्यान करने को सर्वोतम माना जाता है, क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति अपने मन पर वश करना सीखता है और कहते हैं मनजीते जगतजीत। अर्थात् जिसने मन को जीत लिया, उसने सम्पूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। फिर नशा रोकना कौन सा मुश्किल कार्य है। वैसे भी कमजोर मानसिक स्थिति वाले ही अधिकतर नशे को अपनाते हैं। क्योंकि जब उन्हें किसी प्रकार का दुःख तकलीफ या तनाव महसूस होता है, तो वे इसके लिए राहत चाहते हैं और उन्हें लगता है कि मादक पदार्थों के सेवन से उन्हें अपने दुःखों को भूलने में मदद मिलेगी। हालांकि यदि उनके साथ ऐसा होता भी है, तो यह केवल क्षणिक ही होता है। नशा उतरने के पश्चात् उनकी स्थिति यथावत हो जाती है। ऐसे में वे बार-बार नशा करते रहते हैं और फिर पूर्णतया इसके आदी हो जाते हैं। हालांकि सरकार नशे के विरुद्ध पूर्णतया प्रयासरत है, लेकिन सरकार पर ही सब कुछ छोड़ देना गलत होगा। नशे को रोकने के लिए अनेक संस्थाएं आगे आई है, जो एक अच्छी पहल है। अनेक नशामुक्ति केन्द्र भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। समाज को भी इन सबकी सहायता करनी होगी। अन्यया नशा करने वालों को स्वयं तो इन सब से कोई सरोकार होता नहीं है। सिगरेट की डिब्बी पर वैधानिक चेतावनी तस्वीर के साथ लिखी होती है, फिर भी धूम्रपान करने वाले उसे यूं नजर अंदाज कर देते हैं, जैसे लिखी ही न गई हो। उन्हें विशेष रूप से प्रेरणा चाहिए। इसके लिए समाज को प्रेरणा स्रोत बनना होगा। समाज में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे जिनसे अनुभव प्राप्त करके लोग नशे का त्याग करें। अमिट
विवरण:
यह लेख नशाखोरी की समस्या को एक गंभीर सामाजिक बुराई के रूप में प्रस्तुत करता है जो व्यक्ति, परिवार और समाज को प्रभावित करती है. यह बताता है कि घातक नशे व्यक्ति के दिमाग पर सीधा असर करते हैं, जिससे वे लाचार हो जाते हैं और केवल नशे की पूर्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं. लेख में ‘चिट्टा’, स्मैक, हेरोइन, ब्राउन शुगर जैसे नए और खतरनाक नशों के प्रसार पर चिंता व्यक्त की गई है. यह तर्क देता है कि नशे के सौदागर देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. लेख में बताया गया है कि नशे से मुक्त होने के कई तरीके हैं, जिनमें ध्यान को सबसे प्रभावी माना गया है क्योंकि यह इच्छाशक्ति को मजबूत करता है. कमजोर मानसिक स्थिति वाले लोग अक्सर नशे के शिकार होते हैं. सरकार, संस्थाओं और समाज द्वारा नशे के खिलाफ मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. लेख सामाजिक मुद्दों और सरकार और समाज की भूमिका से संबंधित परीक्षा के लिए प्रासंगिक है.
वैश्विक संघर्षों के बीच ‘वॉर एंड पीस’ की प्रासंगिकता
आज विश्व परिदृश्य में बढ़ते भू-राजनैतिक तनावों के कारण देशों के बीच भरोसा दरक रहा है। यूक्रेन-रूस के बीच ‘वॉर के यास्नाया पोलीना में एक संपन्न परिवार में टॉलस्टॉय का जन्म हुआ। टॉलस्टॉय ने रूसी सेना में भर्ती होकर भी अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत न बना ले। वर्तमान समय में एक ऐसी ही शिक्षा की आवश्यकता है, जो उनकी इस इच्छा शक्ति को मजबूत कर सकें। कुछ माह पहले नूरपुर में एक साथ एच.आई.वी. के पचास से अधिक मामले सामने आए और इसका एकमात्र कारण संक्रमित सिरिंज का प्रयोग करना था, जो उन्होंने नशे के लिए प्रयोग किया था। नशा उन पर इतना अधिक हावी था कि उन्हों ने सिरिंज का इस्तेमाल करते समय जरा सी सावधानी बरतना भी उचित नहीं समझा। वे जीवित होते हुए भी मृत समान प्रतीत होते हैं। पृथ्वी पर रहते हुए भी वे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो चुके होते हैं। वस्तुतः हमें नशे व नशे के पदार्थों से घृणा अवश्य करनी चाहिए, परन्तु नशे के चंगुल में फंस चुके व्यक्तियों से घृणा न करके उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। उन्हें इससे मुक्त होने के लिए सहायता करनी चाहिए। नशे से मुक्त होने के अनेक तरीके स्वास्थ्य विभाग द्वारा सुझाव के तौर पर बताए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर संगीत सुनना, व्यायाम करना, सैर करना एवं ध्यान करना। इनमें ध्यान करने को सर्वोतम माना जाता है, क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति अपने मन पर वश करना सीखता है और कहते हैं मनजीते जगतजीत। अर्थात् जिसने मन को जीत लिया, उसने सम्पूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। फिर नशा रोकना कौन सा मुश्किल कार्य है। वैसे भी कमजोर मानसिक स्थिति वाले ही अधिकतर नशे को अपनाते हैं। क्योंकि जब उन्हें किसी प्रकार का दुःख तकलीफ या तनाव महसूस होता है, तो वे इसके लिए राहत चाहते हैं और उन्हें लगता है कि मादक पदार्थों के सेवन से उन्हें अपने दुःखों को भूलने में मदद मिलेगी। हालांकि यदि उनके साथ ऐसा होता भी है, तो यह केवल क्षणिक ही होता है। नशा उतरने के पश्चात् उनकी स्थिति यथावत हो जाती है। ऐसे में वे बार-बार नशा करते रहते हैं और फिर पूर्णतया इसके आदी हो जाते हैं। हालांकि सरकार नशे के विरुद्ध पूर्णतया प्रयासरत है, लेकिन सरकार पर ही सब कुछ छोड़ देना गलत होगा। नशे को रोकने के लिए अनेक संस्थाएं आगे आई है, जो एक अच्छी पहल है। अनेक नशामुक्ति केन्द्र भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। समाज को भी इन सबकी सहायता करनी होगी। अन्यया नशा करने वालों को स्वयं तो इन सब से कोई सरोकार होता नहीं है। सिगरेट की डिब्बी पर वैधानिक चेतावनी तस्वीर के साथ लिखी होती है, फिर भी धूम्रपान करने वाले उसे यूं नजर अंदाज कर देते हैं, जैसे लिखी ही न गई हो। उन्हें विशेष रूप से प्रेरणा चाहिए। इसके लिए समाज को प्रेरणा स्रोत बनना होगा। समाज में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे जिनसे अनुभव प्राप्त करके लोग नशे का त्याग करें। अमिट संस्कृतियों के मध्य एक पुल के रूप में भी कार्य करती हैं। लगभग डेढ़ सौ साल पहले लिखी इस रचना की प्रासंगिकता आज भी है। विचार के तल पर युद्ध की विभीषिकाओं के समानांतर अच्छी सामने आ रही हैं, निश्चित बात नहीं है। मानव सभ्यता की भलाई इसी में मनुष्य सभ्यता के लिए शांति रूप से हमें विचलित करने है कि हमेशा विश्व में शांति बनी रहे। उनका के महत्व सामने आते हैं, उन्नीसवीं सदी के यह भी मानना था कि अगर कभी युद्ध की है। यह पुस्तक अपने गहन सर्वाधिक सम्मानित, रूस के स्थिति बन जाये तो फिर परिणाम निर्णायक यथार्थवाद के लिए जानी चर्चित लेखक- लियो टॉलस्टॉय और उनकी पुस्तक ‘वॉर एंड हो, अन्यथा युद्ध हो ही नहीं। पीस’। सन् 1867 में प्रकाशित और 361 अध्यायों में लिखा यह उपन्यास । 9वीं सदी के रूस में नेपोलियन युद्धो के दौरान हुए सामाजिक, राजनीतिक सैन्य परिवर्तनों का वर्णन ही नहीं देता, बल्कि जीवन के गूढ़ अर्थों की खोज करने का प्रयास भी करता है। ऐतिहासिक संदर्भों के साथ जीवन के अर्थ, नैतिकता, धर्म और शक्ति जैसे दार्शनिक प्रश्नों की पड़ताल भी यह उपन्यास करता है। 9 सितंबर सन् 1828 को रूस क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया। युद्ध के पश्चात् उन्होंने लाशों के डॉ. एस.डी. वैष्णव जो ढेर देखे, उन्हें देखकर उनका मन विचलित हुआ और उन्होंने सेना की नौकरी ही छोड़ दी। इस युद्ध के पश्चात् टॉलस्टॉय ने साहित्य जगत को अपनी क्लासिक रचना ‘वॉर एंड पीस’ दी। पुस्तकें अतीत और भविष्य के बीच एक कड़ी के साथ-साथ, पीढ़ियों और जाती है। संयोग देखिए, उधर जब इस किताब का प्रकाशन हुआ, उसी समय भारत में गांधीजी का जन्म हुआ। प्रासंगिकता समय में इस पुस्तक की प्रासंगिकता इन अर्थों में है कि शांति और समझ के लिए हमारे प्रयासों के महत्त्व को भी यह रेखांकित करती है। टॉलस्टॉय का मानना था कि युद्ध होना अच्छी बात नहीं है। मानव सभ्यता की भलाई इसी में है कि उनका रहे की स्थिति बन जाये तो फिर परिणाम निर्णायक हो, अज्यया युद्ध हो ही नहीं। युद्ध में कोई भी हारे या जीते, नुकसान तो मनुष्यता का ही होगा। आज जिस तरह से देशों के मध्य खून-खराबा हो रहा है और मनुष्यता बौनी नजर आ महात्मा गांधी टॉलस्टॉय के लेखन रही है, ऐसे में टॉलस्टॉय और उनकी से काफी प्रभावित थे। टॉलस्टॉय के रचनाएं बहुत ज्यादा प्रासंगिक हो जाती लेखन और विचारों की समानता के हैं। कारण गांधी उनकी ओर खींचे चले गए। टॉलस्टॉय के जीवन के अंतिम दिनों में दोनों के मध्य पत्राचार भी हुआ। काश! साम्राज्य विस्तार की चाह रखने वाले शासकों ने टॉलस्टॉय के इस उपन्यास को कभी ठीक से पढ़ा होता। आज के दौर में वैश्विक संघर्षों से उपजी अशांति और अस्थिरता के इस विकट ‘वॉर एंड पीस’ ही नहीं, बल्कि उनकी छोटी-छोटी कहानियां भी हमें भीतर तक झकझोरती हैं। बहरहाल, हमें उन बुनियादी सिद्धांतों के साथ, उस फ्रेमवर्क में लौटने की आवश्यकता है, जिसकी नींव पर मनुष्यता और आने वाली पीढ़ी के सपनों को जिंदा रखा जा सके।
विवरण:
यह लेख वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों और संघर्षों के संदर्भ में लियो टॉलस्टॉय के उपन्यास ‘वॉर एंड पीस’ की प्रासंगिकता पर विचार करता है. लेख बताता है कि यह उपन्यास केवल 19वीं सदी के रूस में नेपोलियन युद्धों के दौरान हुए सामाजिक, राजनीतिक और सैन्य परिवर्तनों का वर्णन ही नहीं करता, बल्कि जीवन के अर्थ, नैतिकता, धर्म और शक्ति जैसे दार्शनिक प्रश्नों की भी पड़ताल करता है. टॉलस्टॉय का मानना था कि युद्ध होना अच्छी बात नहीं है और मानव सभ्यता की भलाई शांति बनाए रखने में है. लेख तर्क देता है कि आज जिस तरह से देशों के बीच खून-खराबा हो रहा है, ऐसे में टॉलस्टॉय और उनकी रचनाएं बहुत ज्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं क्योंकि वे शांति और समझ के लिए हमारे प्रयासों के महत्व को रेखांकित करती हैं. महात्मा गांधी पर टॉलस्टॉय के लेखन के प्रभाव का भी उल्लेख किया गया है. यह लेख अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, शांति अध्ययन और साहित्य से संबंधित परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है.