संपादकीय 1: शैक्षणिक गुणवत्ता
मूल संपादकीय (अखबार के अनुसार)
गांधी जी का मानना था कि शिक्षा केवल साक्षरता नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा का सर्वांगीण विकास है। गांधी जी ने शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक और नैतिक रूप से सशक्त बनाने का साधन माना है। इसी के दृष्टिगत प्रदेश सरकार भी शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार कर रही है ताकि छात्र हर स्तर पर लाभान्वित हो सके। राज्य सरकार की प्रभावी नीतियों और शिक्षकों के महत्त्वपूर्ण योगदान के परिणामस्वरूप नवीनतम राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एन.ए.एस.), जिसे परख-2025 के रूप में भी जाना जाता है, ने हिमाचल प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर समग्र रैकिंग में पांचवें स्थान पर रखा है, जो 2021 के सर्वेक्षण में 21वें स्थान से एक बड़ी छलांग है। सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल प्रदेश ग्रेड-3 स्तर पर दूसरे स्थान पर, ग्रेड-6 पर 5वें और ग्रेड-9 पर चौथे स्थान पर रहा है, जो स्पष्ट रूप से राज्य की शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त गुणात्मक सुधारों को दर्शाता है।
शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन करने का उद्देश्य बच्चों का प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करने के लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण करना है ताकि शिक्षा व्यवस्था समावेशी, समानतापूर्ण, भविष्योन्मुखी, नई तकनीक के प्रति सजग और भारतीय जीवन मूल्य के प्रति संवेदनशील हो। आज के बच्चे कल के भारत निर्माता है। अतः इस नई दुनिया में एक सुनिश्चित भविष्य के लिए बच्चों को तैयार करने में शिक्षा व्यवस्था का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान होगा। शिक्षकों और विद्यार्थियों के दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन हो इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की एक्सपोजर विजिट करवाई जा रही है। शिक्षा की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा हर विधानसभा क्षेत्र में राजीव गांधी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूलों को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों के रूप में विकसित किया जाएगा। प्रथम चरण में प्रदेश में पांच राजीव गांधी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल क्रमशः लाहडू और नगरोटा बगवां (कांगड़ा), अमलेहड़ और भोरंज (हमीरपुर) तथा संगनाई (ऊना) में बनाए जाएंगे।
पढ़ने-पढ़ाने की संस्कृति के विकास के लिए प्रदेश में ‘पढ़ो हिमाचल’ के नाम से एक व्यापक अभियान चलाया जाएगा, जिसके तहत प्रदेश के 500 शिक्षण संस्थानों में सामान्य पाठकों और विशेष रूप से युवाओं के लिए वाचनालय बनाए जाएंगे साथ ही प्रत्येक जिला व उप-मंडल मुख्यालयों तथा पंचायत स्तर पर एक आधुनिकतम सुविधाओं वाला पुस्तकालय तथा वाचनालय बनाने की सरकार द्वारा घोषणा की गई। बच्चों को पीने के लिए साफ पानी मिले इसके लिए प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाएगा तथा सरकारी स्कूलों के आठ लाख 50 हजार से अधिक बच्चों को स्टील की पानी की बोतल उपलब्ध करवाई जाएगी। सरकार द्वारा शिक्षा में बेहतरी के लिए प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर की प्रक्रियाओं, संरचना और नियमावली का पूर्ण परीक्षण करके आवश्यक बदलाव लाया जा रहा है ताकि हिमाचल प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श के रूप में उभरे। इसके लिए प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र में कुल नौ हजार 560 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया है।
संपादकीय का मूल्यांकन (परीक्षा की दृष्टि से)
यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में हुए सुधारों, सरकार की नई पहलों और भविष्य की योजनाओं पर केंद्रित है। यह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य बिंदु:
- राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) / परख-2025: यह सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। हिमाचल की रैंक 2021 में 21वें स्थान से सुधरकर 2025 में 5वें स्थान पर आ गई है। ग्रेड-3 में दूसरा, ग्रेड-6 में पांचवां और ग्रेड-9 में चौथा स्थान प्राप्त करना भी उल्लेखनीय है।
- सरकारी पहलें:
- राजीव गांधी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल: प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय मानकों के स्कूल स्थापित करने की योजना। पहले चरण में 5 स्कूलों (लाहडू, नगरोटा बगवां, अमलेहड़, भोरंज, संगनाई) का निर्माण एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
- ‘पढ़ो हिमाचल’ अभियान: पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक अभियान, जिसके तहत 500 वाचनालय और नए पुस्तकालय स्थापित किए जाएंगे।
- अंग्रेजी माध्यम: ग्रामीण बच्चों को अवसर प्रदान करने के लिए पहली कक्षा से अंग्रेजी माध्यम का विकल्प दिया गया है।
- बजटीय आवंटन: शिक्षा क्षेत्र के लिए 9,560 करोड़ रुपये का बजटीय प्रस्ताव सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है।
परीक्षा के लिए प्रासंगिकता:
- HPAS (मुख्य परीक्षा): सामान्य अध्ययन में हिमाचल की शिक्षा नीति, मानव संसाधन विकास और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं से संबंधित प्रश्नों के लिए यह संपादकीय उत्कृष्ट सामग्री प्रदान करता है। NAS रैंकिंग और मॉडल स्कूलों जैसी पहलों का उल्लेख उत्तरों को प्रभावी बना सकता है।
- प्रारंभिक परीक्षा: NAS में हिमाचल की रैंक, मॉडल स्कूलों के स्थान, और ‘पढ़ो हिमाचल’ अभियान के नाम से सीधे प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- निबंध: “शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन,” “हिमाचल का विकास मॉडल” या “गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की चुनौतियां और समाधान” जैसे विषयों पर निबंध लिखने के लिए यह लेख ठोस तर्क और नवीनतम आंकड़े प्रदान करता है।
संपादकीय 2: सहकारिता: स्वर्णिम भविष्य की नींव
मूल संपादकीय (अखबार के अनुसार)
(यह लेख कुरुक्षेत्र पत्रिका, जुलाई 2025 से साभार लिया गया है) वर्ष 2025 के बजट सत्र की प्रमुख उपलब्धियों में से एक ‘त्रिभुवन’ सहकारी विश्वविद्यालय (टीएसयू) विधेयक, 2025 की प्रस्तुति और उसका अधिनियमित किया जाना रहा। यह विधेयक लोकसभा में गत 26 मार्च को और राज्यसभा में 01 अप्रैल को पारित हुआ। 03 अप्रैल, 2025 को राजपत्र अधिसूचना जारी गई, जिसके माध्यम से ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, आनंद (IRMA) को त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया। यह विश्वविद्यालय देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु समर्पित होगा।
भारत में सहकारी क्षेत्र को समर्पित एक पूर्ण विश्वविद्यालय की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। वर्तमान में भारत में 8.5 लाख से अधिक सहकारी समितियां है और लगभग 30 करोड़ सदस्य विभिन्न क्षेत्रों में जुड़े हुए हैं। वैश्विक औसत 12 प्रतिशत की तुलना में, भारत की 20 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या सहकारी आंदोलन का हिस्सा है।
विश्वविद्यालय का नाम ‘त्रिभुवन’ सहकारी यूनिवर्सिटी होगा, जो भारत के सहकारी आंदोलन के अग्रदूत श्री त्रिभुवनदास पटेल के नाम पर होगा, जिन्होंने भारत के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल के मार्गदर्शन में ‘सहकारिता’ की नींव रखी। उन्होंने अमूल की सफलता का उदाहरण दिया, जिसे 1946 में श्री त्रिभुवनदास पटेल ने 250 लीटर दूध से शुरू किया था और जो आज 90,000 करोड़ के वार्षिक कारोबार वाला भारत का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड बन चुका है।
‘पैक्स’ को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में 25 आर्थिक गतिविधियों के साथ इसे जोड़ा गया है। अब ‘पैक्स’ एक कॉमन सर्विस सेंटर के रूप में कार्य कर रहे हैं, जिसके माध्यम से 300 से अधिक सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं। पैक्स का बड़े पैमाने पर कंप्यूटरीकरण किया गया है। सरकार ने सहकारी समितियों पर लगने वाला कर 12 से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है। ‘त्रिभुवन’ सहकारी यूनिवर्सिटी एक शीर्ष संस्था के रूप में इन प्रशिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों को एकीकृत, मानकीकृत और व्यापक रूप से प्रसारित करेगा।
संपादकीय का मूल्यांकन (परीक्षा की दृष्टि से)
यह संपादकीय राष्ट्रीय स्तर पर सहकारिता क्षेत्र में हुए एक बड़े नीतिगत सुधार पर केंद्रित है, जिसका प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार पर पड़ेगा।
मुख्य बिंदु:
- ‘त्रिभुवन’ सहकारी विश्वविद्यालय (TSU) की स्थापना: यह सबसे महत्वपूर्ण जानकारी है। यह विधेयक संसद द्वारा पारित किया जा चुका है और यह आणंद, गुजरात स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (IRMA) को विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करता है।
- प्रमुख व्यक्तित्व: विश्वविद्यालय का नामकरण अमूल के संस्थापक श्री त्रिभुवनदास पटेल के नाम पर किया गया है, जिन्होंने सरदार पटेल के मार्गदर्शन में काम किया। IRMA की स्थापना ‘श्वेत क्रांति’ के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन ने की थी। ये नाम प्रारंभिक और मुख्य परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- भारत में सहकारिता का पैमाना: देश में 8.5 लाख से अधिक सहकारी समितियां और लगभग 30 करोड़ सदस्य हैं। यह क्षेत्र 2030 तक 11 करोड़ नौकरियां सृजित कर सकता है।
- नीतिगत सुधार:
- प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को पुनर्जीवित किया जा रहा है और उन्हें कॉमन सर्विस सेंटर के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- सहकारी समितियों पर कर की दर 12% से घटाकर 7% कर दी गई है।
परीक्षा के लिए प्रासंगिकता:
- UPSC/HPAS (मुख्य परीक्षा): सामान्य अध्ययन के अर्थव्यवस्था खंड में “सहकारी आंदोलन,” “ग्रामीण विकास,” “वित्तीय समावेशन,” और “कृषि सुधार” जैसे विषयों के लिए यह लेख अति महत्वपूर्ण है।
- प्रारंभिक परीक्षा: त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय, IRMA, अमूल, त्रिभुवनदास पटेल, वर्गीज कुरियन और सहकारिता से जुड़े आंकड़ों पर सीधे प्रश्न बन सकते हैं।
- निबंध: “सहकार से समृद्धि,” “भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भविष्य” या “रोजगार सृजन में सहकारी समितियों की भूमिका” जैसे विषयों के लिए यह एक उत्कृष्ट स्रोत है।
- साक्षात्कार: यह एक समसामयिक और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर साक्षात्कार में उम्मीदवार के विचारों को परखा जा सकता है।