संपादकीय: समृद्ध किसान, समृद्ध हिमाचल
हिमाचल प्रदेश में कृषि का पारंपरिक स्वरूप अब आधुनिक तकनीकों और नवोन्मेषी पद्धतियों के साथ सामंजस्य स्थापित कर रहा है । यह एक ऐसा परिवर्तन है जो किसानों को न केवल अपनी उपज बढ़ाने में मदद कर रहा है, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा दे रहा है । इस परिवर्तन के केंद्र में राज्य सरकार की महत्त्वाकांक्षी
‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ है, जिसने राज्य में कृषि के भविष्य को आकार देना शुरू कर दिया है । यह योजना रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी । इसकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 2.22 लाख से अधिक किसान इससे जुड़ चुके हैं । यह आंकड़ा किसानों के बीच बढ़ती जागरूकता और रसायन मुक्त खेती की ओर उनके झुकाव को स्पष्ट रूप से दर्शाता है ।
हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी और संवेदनशील भौगोलिक स्वरूप इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाता है । सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में मुआवजा राशि में कई गुणा वृद्धि की है, जिससे किसानों को उनके नुकसान की भरपाई करने में बड़ी राहत मिल रही है । यह वृद्धि न केवल किसानों को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करती है, बल्कि उन्हें फिर से खेती शुरू करने के लिए प्रोत्साहित भी करती है ।
आधुनिक तकनीकों का समावेश हिमाचल प्रदेश के कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत कर रहा है, जिससे कृषि उत्पादकता और दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है । सरकार ने इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण और अभिनव कदम उठाए हैं । सैटेलाइट इमेजरी और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) नैपिंग तकनीक का उपयोग करके मिट्टी की गुणवत्ता का विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है । यह तकनीक मिट्टी के प्रकार, पोषक तत्त्वों की उपलब्धता, जल धारण क्षमता और अन्य महत्त्वपूर्ण मापदंडों के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करती है । इस डेटा के आधार पर, किसानों को यह जानकारी मिल पा रही है कि उनकी जमीन किस प्रकार की फसलों के लिए सबसे उपयुक्त है, और उन्हें किस मात्रा में उर्वरकों या जैविक इनपुट की आवश्यकता है । यह ‘सटीक कृषि’ (Precision Agriculture) को बढ़ावा देता है, जिससे संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है और अनावश्यक खर्चों में कमी आती है ।
पानी की बचत और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ड्रिप सिंचाई और सोलर पंपों पर 90 प्रतिशत तक का उपदान प्रदान कर रही है । ड्रिप सिंचाई प्रणाली पौधों की जड़ों तक सीधे पानी पहुंचाती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है और सिंचाई दक्षता बढ़ती है । सोलर पंप किसानों को बिजली पर निर्भरता से मुक्त करते हैं, उनकी ऊर्जा लागत को कम करते हैं, और उन्हें पर्यावरण के अनुकूल तरीके से सिंचाई करने में सक्षम बनाते हैं ।
गुणवत्तापूर्ण बीज किसी भी फसल की सफलता की कुंजी होते हैं । सरकार उन्नत बीजों के वितरण पर विशेष जोर दे रही है और किसानों को समय पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं । इसमें उच्च उपज वाली किस्में, रोग प्रतिरोधी बीज, और स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बीज शामिल हैं ।
हिमाचल प्रदेश की विविध भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियां विभिन्न प्रकार के कृषि मॉडल के सफल कार्यान्वयन को संभव बनाती हैं । किन्नौर जिले के किसान अपनी उच्च गुणवत्ता वाली राजमा की खेती करके न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच बना रहे हैं । किन्नौरी राजमा अपनी अनूठी बनावट, स्वाद और पोषण मूल्य के लिए जाना जाता है । सरकार विपणन चैनलों को मजबूत करके और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करके इसे एक प्रीमियम उत्पाद के रूप में बढ़ावा दे रही है । लाहौल-स्पीति का ठंडा रेगिस्तानी क्षेत्र यहां किसान प्राकृतिक मटर, सेब और एग्जॉटिक वेजीटेबल (जैसे ब्रोकली, लेट्यूस, शतावरी) जैसी फसलों की खेती कर रहे हैं । जैविक प्रमाणीकरण के प्रयासों से इन उत्पादों को प्रीमियम बाजार में और भी बेहतर स्थान मिल रहा है ।
किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने और बिचौलियों पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने विपणन व्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण सुधार किए हैं । ई-नाम पोर्टल के माध्यम से किसान सीधे राष्ट्रीय स्तर पर खरीदारों से जुड़ पा रहे हैं । यह एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है जो किसानों को अपनी उपज को देश के किसी भी हिस्से में बेचने की सुविधा देता है । इससे मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता आती है, बिचौलियों की भूमिका कम होती है, और किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिल पाता है ।
पोषण सुरक्षा आज एक वैश्विक चिंता का विषय है, और हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस दिशा में मोटे अनाजों (मिलेट्स) खेती को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया है । मिलेट्स, जिन्हें अक्सर ‘सुपरफूड’ कहा जाता है, पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं और कम पानी तथा कम उर्वरकों में भी उग सकते हैं, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के दौर में एक आदर्श फसल बनाते हैं । कोदो, कुटकी, चौलाई (अमरनाथ) और सांवा (बार्नयार्ड मिलेट) जैसे पोषक अनाजों की खेती के लिए किसानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है । इन अनाजों के बीज किसानों को निःशुल्क या अत्यधिक सब्सिडी दरों पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे उनकी खेती को बढ़ावा मिल रहा है ।
सरकार ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता विभिन्न परियोजनाओं के लिए आवंटित की जा चुकी है । यह फंड कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयों, पैक हाउस और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है । कोल्ड स्टोरेज किसानों को अपनी उपज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद करते हैं, जिससे वे बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव का लाभ उठा सकते हैं और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं । प्रसंस्करण इकाइयां किसानों को अपनी उपज को मूल्य-वर्धित उत्पादों (जैसे जूस, जैम, अचार, आटा) में बदलने में सक्षम बनाती हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है । पैक हाउस उत्पादों की ग्रेडिंग, सॉर्टिंग और पैकेजिंग के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करते हैं, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और बाजार में स्वीकार्यता बढ़ती है ।
कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर किसानों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे उन्हें आधुनिक कृषि पद्धतियों, वैज्ञानिक तकनीकों, फसल प्रबंधन और कीट नियंत्रण के बारे में नवीनतम ज्ञान मिल सके । हिमाचल के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू
‘समृद्ध किसान, समृद्ध हिमाचल’ के ध्येय को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत हैं । उनका लक्ष्य स्पष्ट है कि प्रदेश के मेहनती किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिले और वे आत्मनिर्भर बनें, ताकि उन्हें आजीविका के लिए पलायन न करना पड़े ।
इसी सोच के साथ, सरकार ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को प्राथमिकता के आधार पर खरीदने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है । यह एक क्रांतिकारी कदम है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश पूरे देश में गेहूं, मक्की और कच्ची हल्दी के लिए सबसे अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करने वाला पहला राज्य बन गया है । ये मूल्य क्रमशः गेहूं के लिए 60 रुपये प्रति किलोग्राम, मक्की के लिए 40 रुपये प्रति किलोग्राम, और कच्ची हल्दी के लिए 90 रुपये प्रति किलोग्राम हैं । यह कदम सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ मिले । इसके अतिरिक्त, प्रदेश में प्रत्येक प्राकृतिक खेती करने वाले किसान परिवार से 20 क्विंटल तक अनाज की खरीद करने का प्रावधान किया गया है । यह विशेष प्रावधान छोटे व सीमांत किसानों को भी इसका पूरा लाभ सुनिश्चित करता है, जो अक्सर बाजार तक सीधी पहुंच बनाने में संघर्ष करते हैं ।
प्राकृतिक खेती उत्पादों को बाजार में उचित स्थान देने और उनके विपणन को बढ़ावा देने के लिए, एक महत्त्वपूर्ण पहल के रूप में
‘हिम प्राकृतिक’ ब्रांड को बाजार में लाया गया है । इस तरह के कदम ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन को कम करने और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद कर रहा है ।
संपादकीय का विश्लेषण
यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश सरकार की कृषि नीतियों की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिसका केंद्रीय विषय “समृद्ध किसान, समृद्ध हिमाचल” है। संपादकीय का स्वर अत्यंत सकारात्मक और सरकार के प्रयासों की प्रशंसा करने वाला है। यह दर्शाता है कि कैसे पारंपरिक कृषि को आधुनिक और टिकाऊ तरीकों से जोड़ा जा रहा है ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके।
मुख्य विश्लेषण बिंदु:
- प्राकृतिक खेती पर जोर: संपादकीय का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ को बढ़ावा देना है। यह बताता है कि सरकार रासायनिक खेती से हटकर प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रही है और 2.22 लाख से अधिक किसान इससे जुड़ चुके हैं। यह पहल न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहतर है बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है।
- आधुनिक तकनीक का उपयोग: इसमें सैटेलाइट इमेजरी, जीआईएस मैपिंग और ‘सटीक कृषि’ जैसी आधुनिक तकनीकों का उल्लेख है। यह दिखाता है कि सरकार केवल पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं है, बल्कि तकनीकी समाधानों का उपयोग करके कृषि को अधिक कुशल बना रही है। ड्रिप सिंचाई और सोलर पंपों पर 90% तक की सब्सिडी इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
- बाजार पहुंच और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): संपादकीय इस बात पर जोर देता है कि हिमाचल प्राकृतिक खेती से उगाए गए उत्पादों के लिए देश में सबसे अधिक MSP निर्धारित करने वाला पहला राज्य बन गया है (गेहूं: ₹60/किलो, मक्की: ₹40/किलो, कच्ची हल्दी: ₹90/किलो)। यह एक क्रांतिकारी कदम है जो किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। ई-नाम पोर्टल का उपयोग बिचौलियों को खत्म करके किसानों को सीधे राष्ट्रीय बाजार से जोड़ता है।
- बुनियादी ढाँचा और मूल्य संवर्धन: कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत ₹100 करोड़ से अधिक का आवंटन कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयों और पैक हाउस के निर्माण के लिए किया गया है। इसका उद्देश्य किसानों को अपनी उपज को मूल्य-वर्धित उत्पादों (जैसे जैम, अचार) में बदलने और कटाई के बाद के नुकसान को कम करने में मदद करना है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सशक्तिकरण: कुल मिलाकर, संपादकीय का संदेश स्पष्ट है कि ये सभी पहलें न केवल किसानों की आय बढ़ाएंगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन को भी कम करेंगी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करेंगी। ‘हिम प्राकृतिक’ जैसे ब्रांडों का निर्माण प्राकृतिक उत्पादों को एक अलग पहचान देगा, जिससे उनका विपणन आसान होगा।