गिरिराज साप्ताहिक (09 जुलाई – 15जुलाई, 2025) का संपादकीय/Editorial

संपादकीय 1: बढ़ रहा है पर्यटन (Tourism is Increasing)

मूल संपादकीय (अखबार के अनुसार)

हिमाचल प्रदेश, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और समृद्ध संस्कृति के कारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए सदैव एक पसंदीदा गंतव्य रहा है। प्रदेश सरकार राज्य में पर्यटन को और अधिक बढ़ावा देने तथा इसे रोजगार का एक प्रमुख माध्यम बनाने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही है। इन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। चालू वर्ष के पहले छह महीनों में ही हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों की संख्या एक करोड़ का आंकड़ा पार कर गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है।

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने पर्यटन को अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल किया है। इसका उद्देश्य केवल पर्यटकों की संख्या बढ़ाना ही नहीं, बल्कि उन्हें विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करना और पर्यटन को टिकाऊ (सस्टेनेबल) बनाना भी है। इसी दिशा में कांगड़ा को ‘पर्यटन राजधानी’ के रूप में विकसित करने का निर्णय एक मील का पत्थर साबित हो रहा है। इस पहल के तहत कांगड़ा में आधारभूत ढांचे, जैसे कि सड़कों, हवाई अड्डे के विस्तार और बेहतर नागरिक सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित कांगड़ा घाटी में हेरिटेज विलेज, गोल्फ कोर्स और एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसी अनेक परियोजनाओं को गति दी जा रही है।

प्रदेश सरकार पर्यटन को केवल शिमला और मनाली जैसे पारंपरिक स्थलों तक सीमित नहीं रखना चाहती। राज्य के अनछुए और कम ज्ञात स्थलों (अनएक्सप्लोर्ड डेस्टिनेशंस) को भी पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए एक व्यापक योजना पर काम हो रहा है। इससे न केवल लोकप्रिय स्थलों पर बोझ कम होगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार और आय के नए अवसर सृजित होंगे। होम-स्टे योजना को बढ़ावा देना और स्थानीय युवाओं को गाइड के रूप में प्रशिक्षित करना इसी रणनीति का हिस्सा है।

पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी सरकार की एक बड़ी प्राथमिकता है। ‘ग्रीन टूरिज्म’ की अवधारणा को अपनाते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार का लक्ष्य हिमाचल को एक ऐसे गंतव्य के रूप में स्थापित करना है, जहां पर्यटक प्रकृति का आनंद तो लें, लेकिन उसे कोई नुकसान न पहुंचाएं। इन समग्र प्रयासों से यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में पर्यटन हिमाचल की आर्थिकी की रीढ़ बनकर उभरेगा।

संपादकीय का मूल्यांकन (परीक्षा की दृष्टि से)

यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, सरकारी नीतियों और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।

मुख्य बिंदु:

  1. सफलता का संकेतक: वर्ष के पहले छह महीनों में पर्यटकों का आंकड़ा एक करोड़ पार करना एक महत्वपूर्ण तथ्य है, जिसे उत्तरों में उद्धृत किया जा सकता है।
  2. सरकार की रणनीति: संपादकीय सरकार के त्रि-आयामी दृष्टिकोण को रेखांकित करता है:
    • विश्व स्तरीय सुविधाएं: आधारभूत ढांचे का विकास।
    • पर्यटन का विकेंद्रीकरण: पारंपरिक स्थलों से परे नए गंतव्यों (Unexplored Destinations) का विकास।
    • सतत/टिकाऊ पर्यटन: पर्यावरण संरक्षण (‘ग्रीन टूरिज्म’) पर जोर।
  3. कांगड़ा – पर्यटन राजधानी: यह एक प्रमुख सरकारी पहल है। इसके तहत विकसित की जा रही परियोजनाएं (हेरिटेज विलेज, गोल्फ कोर्स) परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ाव: होम-स्टे योजना और स्थानीय गाइडों के प्रशिक्षण के माध्यम से पर्यटन को ग्रामीण रोजगार से जोड़ने की नीति पर प्रकाश डाला गया है।

परीक्षा के लिए प्रासंगिकता:

  • HPAS (मुख्य परीक्षा): सामान्य अध्ययन में “हिमाचल की अर्थव्यवस्था,” “पर्यटन नीति,” और “रोजगार सृजन” से संबंधित प्रश्नों के लिए यह संपादकीय अत्यंत प्रासंगिक है। ‘कांगड़ा को पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित करने की पहल का आलोचनात्मक विश्लेषण करें’ जैसे प्रश्न सीधे बन सकते हैं।
  • प्रारंभिक परीक्षा: “हिमाचल की पर्यटन राजधानी किसे घोषित किया गया है?” या “ग्रीन टूरिज्म से संबंधित सरकारी पहल क्या है?” जैसे तथ्यात्मक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
  • निबंध: “हिमाचल प्रदेश में सतत पर्यटन की संभावनाएं और चुनौतियां” या “पर्यटन और पर्यावरण: एक संतुलन” जैसे विषयों पर निबंध लिखने के लिए यह लेख उत्कृष्ट सामग्री प्रदान करता है।
  • साक्षात्कार: साक्षात्कार में आपसे प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन के योगदान और इसे बेहतर बनाने के लिए सुझाव मांगे जा सकते हैं, जिसके लिए इस संपादकीय से मिले तर्क बहुत उपयोगी होंगे।

संपादकीय 2: मातृभाषा: हमारी पहचान (Mother Tongue: Our Identity)

मूल संपादकीय (अखबार के अनुसार)

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि किसी भी समाज की संस्कृति, इतिहास और पहचान की आत्मा होती है। विशेषकर मातृभाषा, व्यक्ति के भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास की नींव रखती है। जिस सहजता से एक व्यक्ति अपनी मातृभाषा में सोच और महसूस कर सकता है, वह किसी अन्य भाषा में संभव नहीं। हिमाचल प्रदेश की अपनी समृद्ध बोलियां और भाषाएं हैं, जो सदियों से इस देवभूमि की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं। लेकिन वैश्वीकरण और अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव के इस दौर में, हमारी अपनी भाषाएं और बोलियां हाशिये पर जा रही हैं।

यह चिंता का विषय है कि आज युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से कट रही है। घरों में बच्चों से अंग्रेजी में बात करना एक स्टेटस सिंबल बन गया है, जिसके कारण वे अपनी स्थानीय बोलियों से अपरिचित हो रहे हैं। यदि हमने समय रहते अपनी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो हम अपनी अनमोल सांस्कृतिक विरासत को खो देंगे। भाषा केवल शब्द नहीं होती, उसके साथ लोक-कथाएं, लोक-गीत, मुहावरे और जीवन-मूल्य जुड़े होते हैं। एक भाषा का मरना, एक पूरी संस्कृति का मिट जाना है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने पर जोर दिया गया है, जो एक सराहनीय कदम है। इससे बच्चों की सीखने की क्षमता और रचनात्मकता में वृद्धि होगी। प्रदेश सरकार को भी इस दिशा में और अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए। स्कूलों में स्थानीय बोलियों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा सकता है। हिमाचली भाषाओं में साहित्य सृजन को प्रोत्साहित करने, लेखकों को पुरस्कृत करने और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थानीय कंटेंट को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

हमें यह समझना होगा कि अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा को सीखना महत्वपूर्ण है, लेकिन अपनी मातृभाषा की कीमत पर नहीं। बहुभाषी होना आज के विश्व में एक बड़ी ताकत है। हमें अपनी जड़ों पर गर्व करना चाहिए और अपनी भाषा को सम्मान देना चाहिए। जब हम अपनी भाषा को सम्मान देंगे, तभी विश्व भी हमारी संस्कृति का सम्मान करेगा। हमारी पहचान हमारी मातृभाषा से है, और इसे जीवित रखना हम सभी का सामूहिक दायित्व है।

संपादकीय का मूल्यांकन (परीक्षा की दृष्टि से)

यह संपादकीय एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दे – मातृभाषा के संरक्षण – को संबोधित करता है, जो राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर प्रासंगिक है।

मुख्य बिंदु:

  1. समस्या: वैश्वीकरण और अंग्रेजी के प्रभाव के कारण स्थानीय भाषाओं और बोलियों का क्षरण हो रहा है, जिससे सांस्कृतिक पहचान के खोने का खतरा है।
  2. कारण: इसे सामाजिक प्रतिष्ठा (स्टेटस सिंबल) से जोड़ना और युवा पीढ़ी का अपनी जड़ों से कटना मुख्य कारण बताए गए हैं।
  3. समाधान: संपादकीय ठोस समाधान प्रस्तुत करता है:
    • शैक्षिक हस्तक्षेप: राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का उल्लेख करते हुए स्थानीय बोलियों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव।
    • साहित्यिक और डिजिटल प्रोत्साहन: साहित्य सृजन को बढ़ावा देना और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
  4. संतुलित दृष्टिकोण: यह किसी भी भाषा का विरोध नहीं करता, बल्कि ‘बहुभाषी’ होने के महत्व पर जोर देता है, जिसमें मातृभाषा को प्राथमिकता दी गई है।

परीक्षा के लिए प्रासंगिकता:

  • GS (समाज और संस्कृति): मुख्य परीक्षा में “वैश्वीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव,” “सांस्कृतिक पहचान का संकट” या “भाषा नीति” जैसे विषयों के लिए यह लेख महत्वपूर्ण तर्क प्रदान करता है।
  • निबंध: “मेरी पहचान, मेरी भाषा,” “आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन,” या “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के सामाजिक निहितार्थ” जैसे निबंधों के लिए यह एक उत्कृष्ट आधार है।
  • HPAS: हिमाचल प्रदेश की विभिन्न बोलियों (जैसे कांगड़ी, मंडयाली, किन्नौरी, महासुई) के संदर्भ में यह संपादकीय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रदेश की भाषाई विविधता और उसके संरक्षण के प्रयासों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
  • साक्षात्कार: आपसे मातृभाषा के महत्व या प्रदेश की बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर आपकी राय पूछी जा सकती है। इस संपादकीय में दिए गए तर्क एक सुविचारित उत्तर देने में मदद करेंगे।

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