गिरिराज साप्ताहिक (05-11 मार्च, 2025) का संपादकीय

प्रस्तुत है गिरिराज साप्ताहिक के 05-11 मार्च, 2025 अंक में प्रकाशित संपादकीय लेख “भू-स्खलन रोकने की नई पहल”। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्य में भू-स्खलन की गंभीर समस्या और इसके समाधान के लिए सरकार द्वारा अपनाई जा रही नवीन जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों पर प्रकाश डालता है।

संपादकीय (जैसा पत्रिका में है):

भू-स्खलन रोकने की नई पहल

देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां एक ओर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्वभर में विख्यात है वहीं दूसरी ओर इस शांत प्रदेश में खड़ी और भौगोलिक रूप से युवा पहाड़ियों के प्रति संवेदनशीलता हाल के कुछ वर्षों में विभिन्न कारणों से बढ़ रही है। प्रदेश में भारी मानसूनी बारिश और भू-कंपीय गतिविधियों के चलते राज्य में भू-स्खलन का खतरा लगातार बढ़ रहा है जिससे निपटने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा वैज्ञानिक और जैव इंजीनियरिंग तकनीकों को अपनाकर विशेषकर बरसात के मौसम में आपदा प्रबंधन को और अधिक मजबूत बनाने और लोगों को बुनियादी ढांचे को सुरक्षा प्रदान करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। सालों से भू-स्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे हिमाचल प्रदेश में अब राज्य सरकार बायो इंजीनियरिंग पहल शुरू कर रही है। प्रदेश में अब वेठिवर घास की खेती के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की गई है जो अपने गहरी और घनी जड़ों के कारण मिट्टी को मजबूती से बांधती है और भूमि कटाव को रोकती हैं। इस वेटिवर घास का उपयोग विश्वभर में मुख्यतः भू-स्खलन प्रवण क्षेत्रों, राजमार्ग तटबंधों और नदियों के किनारों पर मिट्टी संरक्षण के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। इसी क्षमता को पहचानते हुए हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने वेटिवर फाउंडेशन-क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी इनीशिएटिव (सी.आर.एस.आई.) तमिलनाडू के सहयोग से भू-स्खलन से निपटने के लिए स्थाई शमन रणनीति विकसित करने के लिए यह परियोजना शुरू की है। इस मानसून सीजन से पहले वेटिवर नर्सरी के लिए प्राधिकरण ने सी.आर.एस.आई. वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया था जिसके तहत फाउंडेशन ने 1,000 वेटिवर घास के पौधे निःशुल्क उपलब्ध करवाएं जिन्हें कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले के बेस्टी में स्थापित नर्सरी में लगाया गया है।

वेटिवर घास मिट्टी को बांधे रखती है। इस उपयोगिता को पहचानते हुए प्रदेश सरकार ने सी.आर.एस.आई. से वेटिवर नर्सरी उपलब्ध करवाने की मांग की है ताकि इस मानसून सीजन से पहले पर्याप्त मात्रा में पौधे उपलब्ध हो सकें। इसके तहत सी.आर.एस.आई. ने हिमाचल प्रदेश में वेटिवर घास के एक हजार पौधों को कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले की बेरटी की नर्सरी में लगाया है। वेटिवर घास एक तेजी से बढ़ने वाला बारहमासी घास का पौधा है जिसकी जड़ प्रणाली व्यापक घनी और गहरी होती है। उष्णकटिबंधीय वातावरण में यह सौ साल तक जीवित रह सकता है। सूखे और ठंड के प्रति संवेदनशील यह एक बारहमासी गुच्छेदार घास है जो दो मीटर की ऊंचाई तक बढ़ती है। इस घास की जड़े मिट्टी में तीन से चार मीटर तक गहरी जाती है और एक मजबूत नेटवर्क बनाती है जो मिट्टी को बांधती है जिसके कारण भू-स्खलन का खतरा कम होता है। यह घास एक प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हुए पानी के बहाव को धीमा कर देती है और विशेषकर खड़ी ढलानों की भूमि के कटाव को रोकती है। पंक्तियों में लगाए जाने पर यह वेटिवर घास एक दीवार की तरह काम करती है। इसकी जड़ें अतिरिक्त पानी को सोखकर मिट्टी में पानी की अधिकता को कम करती है जिससे भू-स्खलन की संभावनाएं कम हो जाती हैं। वेटिवर घास पारंपरिक संसाधनों की तुलना में ढलानों की सुरक्षा के लिए कम लागत, टिकाऊ और रख-रखाव का उचित विकल्प है।

आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम है जो समाज या पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। आपदा चाहे वनों में आग हो, भूकंप, बाढ़, हिम-स्खलन या भू-स्खलन। ये ऐसी आपदाएं हैं जिनका नकारात्मक प्रभाव पर्यावरण समाज व आर्थिकी पर देखने को मिलता है। पिछले कुछ समय में प्रदेश में विभिन्न प्रकार की प्राकृति आपदाओं ने प्रदेश के विकास की गति को धीमा किया है जिनमें भू-स्खलन प्रदेश में होने वाली ऐसी आपदा है जिसमें बहुत से लोगों ने अपना बेटा, किसी ने अपना पिता, मां, बहन और सगे संबंधी खोए हैं। उनके दुःख और मानसिक पीड़ा का आकलन करने का हमारे पास शायद कोई पैमाना नहीं है। ऐसी हृदय विदारक घटनाएं आज भी हमारी स्मृति पर मार्मिक छाप छोड़े है। इन आपदाओं के प्रभाव को कैसे कम किया जाए, नदी-नालों व आपदा संभावित जगहों पर किसी भी तरह का निर्माण नहीं करना चाहिए। विकास के नाम पर मानव द्वारा प्रकृति का जो अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है उस पर रोक लगानी होगी। इसमें ही सभी का हित निहित है।


संपादकीय का विवरण (Description):

यह संपादकीय “भू-स्खलन रोकने की नई पहल” हिमाचल प्रदेश में भू-स्खलन की बढ़ती समस्या और इसके समाधान के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए जा रहे एक नवीन कदम पर प्रकाश डालता है। लेख के अनुसार, प्रदेश की भौगोलिक संवेदनशीलता, भारी मानसूनी बारिश और भू-कंपीय गतिविधियों के कारण भू-स्खलन का खतरा बढ़ गया है।

मुख्य विषय और चर्चा के बिंदु:

  1. भू-स्खलन की समस्या:
    • हिमाचल प्रदेश की युवा पहाड़ियों की संवेदनशीलता और विभिन्न प्राकृतिक कारणों से भू-स्खलन का खतरा राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है।
    • इससे न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि विकास की गति भी धीमी होती है।
  2. सरकार की नई पहल – वेटिवर घास:
    • राज्य सरकार ने भू-स्खलन से निपटने के लिए बायो-इंजीनियरिंग तकनीक के तहत वेटिवर घास की खेती के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है।
    • वेटिवर घास अपनी गहरी (3-4 मीटर तक) और घनी जड़ प्रणाली के कारण मिट्टी को मजबूती से बांधती है, भूमि कटाव को रोकती है, और पानी के बहाव को धीमा करती है।
    • यह पारंपरिक तरीकों की तुलना में ढलानों की सुरक्षा के लिए एक कम लागत वाला, टिकाऊ और आसान रखरखाव वाला विकल्प है।
    • हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इस परियोजना के लिए वेटिवर फाउंडेशन-क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी इनीशिएटिव (सी.आर.एस.आई.), तमिलनाडु के सहयोग से स्थाई शमन रणनीति विकसित की है।
    • सी.आर.एस.आई. ने 1,000 वेटिवर घास के पौधे निःशुल्क उपलब्ध करवाए हैं, जिन्हें कृषि विभाग के सहयोग से सोलन जिले की बेरटी स्थित नर्सरी में लगाया गया है।
  3. आपदा प्रबंधन और विकास में संतुलन:
    • संपादकीय इस बात पर जोर देता है कि आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए नदी-नालों और आपदा संभावित क्षेत्रों में निर्माण कार्यों से बचना चाहिए।
    • विकास के नाम पर प्रकृति के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाने की आवश्यकता है, क्योंकि इसी में सभी का हित निहित है।

प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से महत्व:

यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश की एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती (भू-स्खलन), उससे निपटने के लिए सरकार द्वारा अपनाई जा रही वैज्ञानिक एवं नवीन तकनीक (वेटिवर घास का उपयोग), और संबंधित संस्थानों (राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, सी.आर.एस.आई. तमिलनाडु) की भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह आपदा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, और सतत विकास जैसे विषयों के लिए महत्वपूर्ण है। वेटिवर घास की विशेषताएं और भू-स्खलन रोकने में उसकी उपयोगिता पर प्रश्न बन सकते हैं। साथ ही, यह लेख विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है, जो एक व्यापक चर्चा का विषय है।

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