गिरिराज साप्ताहिक (05-11 फरवरी, 2025) का संपादकीय
प्रस्तुत है गिरिराज साप्ताहिक के 05-11 फरवरी, 2025 अंक में प्रकाशित संपादकीय लेख “ग्रामीण आर्थिकी का सुदृढ़ीकरण”। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और योजनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
संपादकीय (जैसा पत्रिका में है):
ग्रामीण आर्थिकी का सुदृढ़ीकरण
गांधी जी का मानना था कि किसान-कृषि व गांवों का विकास ही सही मायनों में भारत का विकास है। उन्होंने गांव को भारत की आत्मा कहा और तर्क दिया कि देश की प्रगति और खुशहाली शहरों के विकास से नहीं बल्कि गांव की समृद्धि से मापी जाएगी। गांधी जी के लिए भारत की ताकत उसके गांव में निहित है और किसानों की भलाई देश की समृद्धि के लिए अत्याधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत भी एक कृषि प्रधान देश है और यहां की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है। अतः किसान ही देश की रीढ़ है और उनके विकास के बिना देश व प्रदेश की प्रगति संभव नहीं है क्योंकि जीवन की सबसे बुनियादी आवश्यकता अन्न का उत्पादन कृषकों द्वारा ही किया जाता है। हिमाचल प्रदेश की भी अधिकांश आबादी गांव में ही बसती है और यहां के आर्थिक विकास का पहिया भी यहां के मेहनतकश किसान-बागबान और पशुपालक चलाते आ रहे हैं। हिमाचल की वर्तमान सरकार कृषि उत्पादन बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिए नवाचारों को बढ़ावा दे रही है ताकि प्रदेश का किसान वर्ग इसके जरिए अपने सुनहरे भविष्य के सपने को साकार कर सके।
किसान हितैषी योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए सरकार द्वारा प्राकृतिक पद्धति से उगाए गए गेहूं को 40 रुपये और मक्की को 30 रुपये प्रति किलोग्राम के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्राकृतिक रूप से उत्पादित मक्की से तैयार ‘हिम भोग-हिम मक्की आटा’ लॉन्च किया गया है। इस प्रकार प्रदेश के 1508 किसानों से 399 में मीट्रिक टन मक्की की खरीद समर्थन मूल्य पर की जा चुकी है और किसानों के बैंक खातों में 1.20 करोड रुपये हस्तांतरित किए जा चुके हैं। पशुपालकों की आय में वृद्धि हो इसके लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने गाय के दूध पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को 32 से बढ़ाकर 45 रुपये प्रति लीटर किया है। इसी तरह भैंस के दूध को 47 से बढ़ाकर 55 रुपये प्रति लीटर किया गया है। हिमाचल प्रदेश गेहूं, मक्की और दूध खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य है। लघु किसानों और पशुपालकों को लाभ प्रदान करने के लिए 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से जैविक खाद और वर्मी कंपोस्ट खरीद योजना शुरू की गई है।
प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा ग्रामीण आर्थिक को संबल प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। दुग्ध उत्पादन से जहां पशुपालक जुड़े हैं वहीं विभिन्न हितधारक भी इस योजना से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं। सरकार द्वारा दुग्ध संयंत्रों का चरणबद्ध तरीके से उन्नयन किया जा रहा है। हाल ही में में कांगड़ा जिला के ढगवार में 1.50 लाख लीटर प्रतिदिन क्षमता के अत्याधुनिक दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र की आधारशिला रखी गई है जिसे भविष्य में तीन एलएलपीडी तक बढ़ाया जा सकता है। इस संयंत्र के क्रियाशील होने से कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर, चंबा और ऊना जिलों के 35 हजार से अधिक दुग्ध उत्पादक लाभान्वित होंगे। इसमें दुग्ध संग्रहण, प्रसंस्करण गुणवत्ता नियंत्रण और वितरण के साथ परिवहन आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन जैसी सेवाओं में वहां के स्थानीय युवाओं को रोजगार के साथ स्वरोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। यह संयंत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में मील पत्थर साबित होगा। अब राज्य सरकार द्वारा दूध की दरों में वृद्धि के बाद मिल्कफैड की दैनिक दूध खरीद क्षमता 1,40,000 लीटर से बढ़कर 2,10,000 लीटर हो गई है।
हिमाचल प्रदेश, देश का शीर्ष दूध उत्पादक राज्य बनकर उभरे इसके लिए प्रदेश में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और दुग्ध संयंत्रों का भी चरणबद्ध तरीके से उन्नयन किया जा रहा है। जिला शिमला के रामपुर विधानसभा क्षेत्र के दत्तनगर में 25.67 करोड़ रुपये की लागत से तैयार 7000० लीटर प्रतिदिन क्षमता के इस संयंत्र से प्रदेश के चार जिलों जिनमें शिमला, कुल्लू, मंडी तथा किन्नौर के दुग्ध उत्पादक लाभान्वित हो रहे हैं। इस संयंत्र में फ्लेवर्ड मिल्क, खोया, घी, मक्खन, पनीर, लस्सी तथा दही का उत्पादन किया जा रहा है। दूध खरीद में पारदर्शिता आए और किसानों को एसएमएस के माध्यम से उनके दूध की गुणवत्ता व मूल्य की जानकारी प्रदान की जाए इसके लिए एक डिजिटल प्रणाली शुरू की जाएगी। इस प्रणाली के तहत दूध खरीद का रियल टाइम डाटा उपलब्ध होगा और किसानों को पैसा सीधा उनके खातों में प्राप्त होगा। गांवों का आधारभूत ढांचा सुदृढ़ हो और उनकी आर्थिकी मजबूत हो इसके लिए सरकार ने विकास का रुख गांव की ओर किया है।
राज्य की आर्थिकी में बागवानी का बहुत बड़ा योगदान है। हिमाचल का सेब अन्य देशों के बाजार में कम न आंका जाए इसके लिए सरकार ने कई बागबानी हितैषी निर्णय लिए है जिनमें मुख्य रूप से बागबानों की लंबे समय से चली जा रही यूनिवर्सल कार्टन की मांग को पूरा किया है जिसके कारण सेब को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ही पेटियों में भरा तथा बेचा जाएगा। इससे प्रदेश के बागबान व्यापक रूप से लाभान्वित होंगे।
संपादकीय का विवरण (Description):
यह संपादकीय, “ग्रामीण आर्थिकी का सुदृढ़ीकरण”, महात्मा गांधी के विचारों को आधार बनाते हुए ग्रामीण विकास और किसान कल्याण को देश की प्रगति के लिए सर्वोपरि मानता है। लेख में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कृषि, पशुपालन और बागवानी क्षेत्रों में किसानों और पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए लागू की गई विभिन्न योजनाओं और नवाचारों पर प्रकाश डाला गया है।
मुख्य विषय और चर्चा के बिंदु:
- किसान कल्याण और कृषि विकास:
- सरकार किसान हितैषी योजनाओं के माध्यम से कृषि उत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): प्राकृतिक पद्धति से उगाए गए गेहूं के लिए ₹40 प्रति किलो और मक्की के लिए ₹30 प्रति किलो का MSP निर्धारित किया गया है।
- ‘हिम भोग-हिम मक्की आटा’: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु इस ब्रांड के तहत मक्की का आटा लॉन्च किया गया है। 1508 किसानों से 399 मीट्रिक टन मक्की MSP पर खरीदी गई, जिससे उनके खातों में ₹1.20 करोड़ हस्तांतरित हुए।
- जैविक खाद खरीद योजना: लघु किसानों और पशुपालकों से ₹300 प्रति क्विंटल की दर से जैविक खाद और वर्मी कंपोस्ट खरीदने की योजना शुरू की गई है।
- पशुपालन और डेयरी विकास:
- दूध का MSP: गाय के दूध का MSP ₹32 से बढ़ाकर ₹45 प्रति लीटर और भैंस के दूध का ₹47 से बढ़ाकर ₹55 प्रति लीटर किया गया है। हिमाचल इस प्रकार का MSP प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य है।
- दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र: कांगड़ा जिले के ढगवार में 1.50 लाख लीटर प्रतिदिन (LLPD) क्षमता के अत्याधुनिक दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र की आधारशिला रखी गई है, जिसे भविष्य में 3 LLPD तक विस्तारित किया जाएगा। इससे कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर, चंबा और ऊना जिलों के 35 हजार से अधिक दुग्ध उत्पादक लाभान्वित होंगे और स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा।
- रामपुर (शिमला) के दत्तनगर में ₹25.67 करोड़ की लागत से 70,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता का संयंत्र शुरू हुआ है, जिससे चार जिलों के दुग्ध उत्पादक लाभान्वित हो रहे हैं और विभिन्न दुग्ध उत्पादों का उत्पादन हो रहा है।
- डिजिटल प्रणाली: दूध खरीद में पारदर्शिता लाने और किसानों को गुणवत्ता व मूल्य की जानकारी SMS से देने के लिए डिजिटल प्रणाली शुरू की जाएगी, जिससे भुगतान सीधे खातों में होगा।
- मिल्कफैड की दैनिक दूध खरीद क्षमता ₹1.40 लाख लीटर से बढ़कर ₹2.10 लाख लीटर हो गई है।
- बागवानी क्षेत्र:
- यूनिवर्सल कार्टन: बागबानों की मांग को पूरा करते हुए यूनिवर्सल कार्टन नीति लागू की गई है, ताकि सेब की पैकिंग अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो और बागबानों को उचित दाम मिलें।
- सरकार का दृष्टिकोण:
- सरकार गांवों का आधारभूत ढांचा सुदृढ़ करने और उनकी आर्थिकी मजबूत करने के लिए विकास का रुख गांवों की ओर कर रही है।
प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से महत्व:
यह संपादकीय हिमाचल प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि, पशुपालन और बागवानी से संबंधित सरकारी योजनाओं, नीतियों और महत्वपूर्ण आंकड़ों पर प्रकाश डालता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (गेहूं, मक्का, दूध), नई योजनाएं (जैविक खाद खरीद, हिम भोग आटा), डेयरी प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना और क्षमता, यूनिवर्सल कार्टन नीति जैसे तथ्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह लेख प्रदेश सरकार की ग्रामीण विकास और किसान कल्याण के प्रति प्राथमिकताओं को समझने में भी सहायक है।