1. स्टेट स्पोर्टिड बायोचार कार्यक्रम संचालित करने वाला पहला राज्य बना हिमाचल

हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहाँ स्टेट स्पोर्टिड बायोचार कार्यक्रम (State Supported Biochar Programme) शुरू किया गया है। इस पहल के तहत, हमीरपुर जिले के नेरी में छह महीने के भीतर एक बायोचार संयंत्र स्थापित किया जाएगा।

इस कार्यक्रम के लिए शिमला में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू की उपस्थिति में एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoA) पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी, हिमाचल प्रदेश वन विभाग, और प्रोक्लाइम सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई के बीच हुआ।

मुख्यमंत्री ने इस पहल को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना जंगल में आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित करने में सहायक होगी, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के नए अवसर पैदा होंगे और जागरूकता भी बढ़ेगी।

इस कार्यक्रम के तहत, चीड़ की पत्तियाँ, लैंटाना, बांस और पेड़-पौधों से उत्पन्न होने वाले बायोमास का उपयोग करके बायोचार का उत्पादन किया जाएगा।

विश्लेषण: हिमाचल प्रदेश में ‘स्टेट स्पोर्टिड बायोचार कार्यक्रम’ शुरू किया गया है । इस कार्यक्रम के तहत हमीरपुर जिले के नेरी में छह महीने के भीतर एक बायोचार संयंत्र स्थापित किया जाएगा । इस पहल का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वन अग्नि की घटनाओं को नियंत्रित करना है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर भी पैदा होंगे । यह कार्यक्रम चीड़ की पत्तियों, लैंटाना और बांस जैसे बायोमास का उपयोग करके बायोचार का उत्पादन करेगा, जिससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे और राज्य को कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने में मदद मिलेगी ।

2. सामूहिक जिम्मेदारी : राज्यपाल

राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने हाल ही में राज्य में हुई भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र किया और इसके लिए अनियोजित विकास और वनों की अंधाधुंध कटाई को मुख्य कारण बताया।

राज्यपाल ने कहा कि प्रकृति के साथ किया गया छेड़छाड़ विनाश का कारण बन सकता है। उनका मानना ​​है कि हम सभी को मिलकर पृथ्वी के संतुलन को फिर से स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हम इन प्राकृतिक आपदाओं से बचना चाहते हैं तो हमें अपने विकास मॉडल को बदलना होगा।

राज्यपाल ने युवाओं से आग्रह किया कि वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी को एक सुरक्षित भविष्य देने के लिए प्रकृति का संरक्षण करना सबसे महत्वपूर्ण है। राज्यपाल ने लोगों को अपने आस-पास के क्षेत्र को हरा-भरा रखने के लिए वृक्षारोपण करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

विश्लेषण: राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने पर्यावरण संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है । उन्होंने हाल ही में राज्य में हुई भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का उल्लेख किया । उनका मानना है कि वनों की अंधाधुंध कटाई और अनियोजित विकास के कारण पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है, और इन आपदाओं से बचने के लिए विकास मॉडल को बदलना आवश्यक है ।

डिजिटल कृषि पर पूरा लेख यहाँ दिया गया है, जैसा कि समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था।


3. डिजिटल कृषि की ओर बढ़ते कदम

हिमाचल प्रदेश में कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में प्रयास चल रहे हैं। इसमें डिजिटल कृषि और एगी स्टैक (Agri Stack) जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग महत्वपूर्ण कदम है। इनका उद्देश्य किसानों को उनकी फसलों के बारे में सही और सटीक जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे बेहतर और समय पर निर्णय ले सकें।

एगी स्टैक एक ऐसा डेटाबेस है जिसमें किसानों की सारी जानकारी जैसे कि उनकी भूमि का क्षेत्रफल, मिट्टी का प्रकार, और जलवायु की स्थिति संग्रहीत होती है। यह जानकारी उपग्रह चित्रों और मौसम की भविष्यवाणी से जोड़ी जाती है, जिससे किसानों को वास्तविक समय में जानकारी मिलती है।

यह प्रणाली किसानों को यह जानने में मदद करती है कि किस प्रकार की फसल उगाने से अधिक लाभ होगा, और उन्हें कब बीज बोने और फसल की कटाई करने की आवश्यकता है। इससे कृषि में होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और खेती को अधिक कुशल और लाभदायक बनाया जा सकता है।

सरकार का मानना है कि डिजिटल कृषि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और कृषि क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। यह पहल ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत के अनुरूप है, जिससे छोटे किसानों को भी नई तकनीकों का लाभ मिल सकेगा।
विश्लेषण: यह लेख डिजिटल कृषि और एगी स्टैक जैसे प्लेटफॉर्म के महत्व पर प्रकाश डालता है । डिजिटल तकनीकें किसानों को डेटा-आधारित निर्णय लेने में मदद करती हैं । यह उपग्रह चित्रों, मौसम पूर्वानुमान, और मिट्टी स्वास्थ्य रिपोर्ट जैसे विभिन्न डेटा को एकीकृत कर सकती है ताकि किसानों को वास्तविक समय की जानकारी मिल सके । यह प्रणाली कृषि में नुकसान को कम करने और दक्षता बढ़ाने में सहायक हो सकती है ।

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